क्षमा याचना

११ सितंबर 2008

तुम्हारे लिए हम सिर्फ़ संसाधन है,

तुम वोह टाई वाली हो

जो करते तोह टीम वर्क है

पर प्रोजेक्ट ख़तम होने पर बॉस के सामने

तन कर खरे हो जाते है और

क्रेडिट ले जाते है सब

बहुत कुछ कमाया है तुमने

रात को नींद भी आ जाती है तुम्हें '

इतना कुछ जो सहेजा है तुमने

आत्मा को मारकर, ज़मीर को बेचकर, गैरत को ताख पर रख कर

काबिल-ऐ- तारीफ है यह

सच तुम्हें इसका इनाम मिलना ही चाहिए

मैं बहुत शर्मिदा हूँ जो ऐसा ना कर सका

शायद गुनहगार भी हूँ जो यह खेल ना खेल सका

हमें नींद भी नही आती

बेचैन सा रहता हूँ हर वक्त

माफ़ करना जो आत्मसम्मान बेचना ना आ सका

सबको बेवकूफ बनाना ना आ सका

----- सागर

7 टिप्पणियाँ:

शोभा said...

बहुत अच्छा लिखा है. स्वागत है आपका

شہروز said...

बहुत खूब!आपके तख्लीकी-सर्जनात्मक जज्बे को सलाम.
आप अच्छा काम कर रहे हैं.
फ़ुर्सत मिले तो हमारे भी दिन-रात देख लें...लिंक है:
http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/
http://saajha-sarokaar.blogspot.com/
http://hamzabaan.blogspot.com/

Udan Tashtari said...

हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.

वर्ड वेरिपिकेशन हटा लें तो टिप्पणी करने में सुविधा होगी. बस एक निवेदन है.

Kavita Vachaknavee said...

नए चिट्ठे का स्वागत है. निरंतरता बनाए रखें.खूब लिखें,अच्छा लिखें.

Anonymous said...

achchha hai, bahut achchha hai

प्रदीप मानोरिया said...

ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है बहुत सटीक लिखते हैं समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर भी दस्तक दें

प्रिया said...

zameer bechna....log kitni aasani se ye kaam kar lete hain.....ab tak to seekh gaye honge aap bhi...shayad % mein kami ho thodi