छूटा हुआ किस्सा
मेरे दराजों में बंद है
वो ख़त---
जिसके हरेक हर्फ़ में तुम्हारा चेहरा नुमाया होता था
मैंने सहेज रखा है दोपहर
जिसमे वस्ल की उमस है
मैंने समेत रखा है वो लम्स
जैसे फिर किसी ने छुआ ही ना हो
मैंने वैसे ही संजो रखा है
वो कांच
वो गिरा-गिरा सा दुप्पट्टा
वो बिखरी-बिखरी हँसी
वो छुटी-छुटी सी बात
वो छुई हुई सी नज़र
वो अल्फाज़
वो...
बस खो गई तुम ऐसे ही...
पता नही कैसे.....
मेरे दराजों में बंद है
वो ख़त---
जिसके हरेक हर्फ़ में तुम्हारा चेहरा नुमाया होता था
मैंने सहेज रखा है दोपहर
जिसमे वस्ल की उमस है
मैंने समेत रखा है वो लम्स
जैसे फिर किसी ने छुआ ही ना हो
मैंने वैसे ही संजो रखा है
वो कांच
वो गिरा-गिरा सा दुप्पट्टा
वो बिखरी-बिखरी हँसी
वो छुटी-छुटी सी बात
वो छुई हुई सी नज़र
वो अल्फाज़
वो...
बस खो गई तुम ऐसे ही...
पता नही कैसे.....