आप देखते हैं महानुभाव कि तर्क एक अच्छी चीज़ है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता, लेकिन तर्क सिर्फ मनुष्य के बौद्धिक पक्ष को ही संतुष्ट कर सकता है, जबकि ‘स्वतन्त्रयेच्छा’ संपूर्ण जीवन की अभिव्यक्ति है। मेरे कहने का अर्थ है जिसमें तर्क और कल्पना भी सम्मिलित है, हालांकि इसके अनुसार चलने में खतरे ही खतरे हैं। लेकिन इसके बावजूद एक जीवन है, किसी संख्या का स्क्वायर रूट निकालना नहीं। उदाहरण के लिए मैं अपने जीवन को अपने समस्त सामर्थ्य के साथ जीने में विश्वास करता हूं। सिर्फ बौद्धिकता के साथ नहीं, जो कि मुश्किल से मेरी जिजीविषा का 1/20वां अंश है। बुद्धि से आप अधिक से अधिक क्या जान सकते हैं? बुद्धि उतना ही समझ सकती है जितनी उसकी सीमा है। और शायद कुछ चीज़ें ऐसी हैं जिन तक यह कभी नहीं पहुंचेगी। मनुष्य चेतन और अंतश्चेतन की पूर्ण इकाई के रूप में कर्म करता है और हालांकि यह कुछ अतर्क्य सी स्थिति है, फिर भी वह इसे जीता है। --- फ्योदोर दास्तोएवस्की। मेरे लिए।