इजाज़त हो तो...


इजाज़त हो तो...

एक चुटकी लाली
तुम्हारे रुखसारों में घोल दूं...
शहद मिला दूं
लरज़ते लबों से झरते अशआरों में !

जान-बूझ कर गिरा दूं-
कुछ सामान
कई ख्याल जगा लूं...

तुम्हारा पल्लू, तुम्हारी कमर में खोंस दूं,
उन मछलियों को तड़पा दूं,
नम रेतों पर जो दम तोड़ती है
तुम्हारे बदन की तरह

रसोई के बर्तनों में चूड़ियों की खनक टांक दूं
परदों में तुम्हारी तुम्हारे ऐड़ियों की ऊंचाई लगा दूं
या कि
आंगन में तुम्हारे पायलों की छनक जगा दूं

नीली रोशनी में,
तुम्हारे बदन की यकबयक सारी गिरहें खोल दूं

इजाज़त हो तो...

जानता हूँ;
ऐसे काम बिना इजाज़त किये जाते हैं

पर आठ बरस बाद;
वक़्त की शर्तें बदल भी तो जाती हैं.

बोलो ना!


जल्दी जल्दी बोलो
बड़ी-बड़ी, खरी- खरी
और
छोटी-छोटी बातें

झूठ का वजूद लिए हम
निर्दयी दुनिया में
सच सुनने की कटोरी लिए घूम रहे हैं

बड़े ही व्याकुलता से देखा करते है तुमको
कि तुम हर बार नयी कुछ बात कहोगे
जो सौ बात के एक बात होगी
यह हमारे ही दिल का गुबार होगा

कुछ ऐसा कह दो जो
रोटी बेली नहीं जा रही है
पर मुझे स्वाद भूला सा लग रहा है
तालू की पिछली छोर पर बैठा वो स्वाद
लगातार उकसाता रहता है
कि कुछ बोलो
मनमाफिक

बोलो ना!

महिमामंडन


कौन सा डर है आज मुफीद!!!
इस मुद्दे पर हम रोज़ बैठकें करते हैं...

हम एक लार टपकाती डब्बे में कैद हैं

अपने आई कार्ड से रौब जमाते,
फैंटसी पूरा करते,
जिंसी ताल्लुकात लिखते,
चटाखेदार खबरें छापते;
नहीं थकते हम...

हर दिन छापते/दिखाते हैं
मुद्दे से बड़ी रंगीन तस्वीर
चिकने, लंबे टांगों की

तुम बदसूरत लड़कियों में
हीन-भावना भरते हैं
फिर कुंठा ग्रस्तों को सुझाते है
किसी मसाज, पार्लर का विज्ञापन

बस बने रहो हमारे साथ
हम हर समाधान देते हैं

हम बहाने से बताते हैं
सिलिब्रिटी से अपने प्रगाढ़ रिश्ते...
नेताओं से मधुर मिलन...

हम पत्रकारिता कर रहे हैं...
... जिम्मेदारी से देश बर्बाद कर रहे हैं.

घुसपैठ


नज़रिया अपना गहरा है
शायद सदियों से ठहरा है

सन्नाटे सुनती नहीं दुनिया
बात पक्की है, ज़माना बहरा है

सराबी* पैकर** बिखरे है पानी में
समंदर में भी सेहरा है

नीमबाज़ आखें, तरन्नुम आवाज़, गुदाज़ बाहें
हर बदन में तुम्हारा चेहरा है

रिश्ते तोड़ कर देता है दिलासा
दोस्ती अब अपना गहरा है

हाँ उसी बूँद की तलब है मुझको
तुम्हारे होंठों पर जो शबनम ठहरा है

क्लाइमेक्स की ऐसी उम्मीद नहीं थी
हालात कहाँ - कहाँ से गुज़रा है

खंडहरों पर मकां बना रहे हो ज़ालिम
वहां अब भी उसका पहरा है

छुप-छुप कर क्यों निकलते हो 'सागर'
किस्से झगडा है, क्यों खतरा है ?

कुछ दिन और बहर से खेल 'सागर'
पुराना वोही तेरा रास्ता है!!!!

*मृगतृष्णा **बिम्ब

वाहियात ख्याल


उसके काबिलियत का कोई सानी नहीं है
यह दीगर है कि आँख में पानी नहीं है

माली हालत देख कर अबके वो घर से भागी
यह कहना गलत है कि उसकी बेटी सयानी नहीं है

कितने पैकर कैद हैं आँखों में तुम्हरे हुस्न के
मुद्दा ये कोई जिक्र-ए- बयानी नहीं है

इन्कलाब करना सबकी फितरत नहीं
ये वो शै है जो खानदानी नहीं है

सुना है पैर पसारने लगा है भाई अपना
वतन के निज़ामों में मगर परेशानी नहीं है!

हर आशिक 'कूल', हसीनाएं 'हॉट' हैं
नज़र में अब कोई मीरा दीवानी नहीं है

चाँद पर सूत काटती रहती है वो बुढिया
नयी नस्लों में ये भोली कहानी नहीं है

तमाम उम्र इसी अफसुर्दगी में जिया 'सागर'
मेरे ज़िन्दगी का अरसे से कोई मानी नहीं है...

मिसरा उला लिए बैठा हूँ जाने कब से
जिंदगी का कोई मिसरा सानी नहीं है.

हालात-ए-हाज़रा


गलियों में रात उतर गया होगा
तभी आमदो-रफ़्त घट गया होगा

रिश्ते मुलाकातों पर निगाहों से तसदीक करते हैं
इस दरम्यां दौलत में क्या इजाफा हुआ होगा

तुम्हारा तसव्वुर, तुम्हारे कांधे सा महकता है
तुम्हें ता-उम्र चांद ने नहलाया होगा

हो सके तो उस तिल को क्वांरा रखना
मेरे चूमे से जो गहरा गया होगा

अफसाने मुहब्बत के मौत में बदले
उसने सय्याद से हाथ मिला लिया होगा

सुना है वो वादी था, अब कमरा बन गया!
मेरी मानो, ईश्क में नाकाम हुआ होगा

मैं मुतमईन होकर खुदकशी का कायल हूं
लोग कहते हैं कि `साला! पगला गया होगा`

जेब भारी हो गए, कद घटने लगे
पेशे में जरूर 'हाँ जी- हाँ जी' मिला दिया होगा

अपनी मराहिल मैं तुम्हें क्या बताऊं मां
तुम कहोगी- तू फिर भूखा सोया होगा!

खबरें कहीं से भी राहतों के नज़र नहीं आते
तो क्या, खुदा शहर से बेवफा हुआ होगा?

पर्दे पर देखते रहिए ब्रेक्रिंग न्यूज़ का सिलसिला
वरना कुरानों वाला कयामत का खदशा होगा

कलम तल्ख़ क्यों हो गई `सागर`
जरूर वाकिआ बदल गया होगा

तकिया-कलाम


नज़्म-नज़्म लाल लिख
दिन,महीने, साल लिख

लहराते झंडों के साए में
जवां वीरों के भाल लिख

महज़ खोखले उड़ान न भर
ज़र्रा-जर्रा कमाल लिख

खबरें न सुना दुनिया भर की
पात-पात, हाल-ए-डाल लिख

ईश्क है, परवान चढ़ने से पहले
पड़ोसियों की चाल लिख

सबके ऊपर उसका ही सरमाया है
जो बोले सो निहाल लिख

बड़ा शातिर है रकीब अपना
बधाईयों की चाल लिख

पूरब से आया नहीं कोई झोंका
इस बरस तो अपना हाल लिख

दायरा कलम का बढ़ा अपनी
चापलूसी छोड़ए नमकहलाल लिख

एक्स-रे करना बंद कर `सागर`
रूखसार थे उनके लाल लिख