कान एक विशाल समुद्र तट है


मौन बोलता है चुप चुप
रात्रि के इस नीरव अन्धकार में
रात का अँधेरा नदी की मानिंद बहा जाता है.
रात की नायिका भरे बाहों वाला ब्लाउज पहन
दोनों आँखों पर कोहनी धरे रात भी रोती है चुप चुप
आँखों के कोर से काजल बह चली है धीमे धीमे
ब्लाउज पर जहाँ तहां उमेठे हुए दाग लगे हैं.

तारे रात भर बोलते हैं चुप चुप
पाइप से पानी टंकी में उतरता रहता है.
मुंडेरों पर झपकी लेते कबूतरों की नींद अपनी ऊँघ में है.
तलवे से झड़ते हैं थोड़ी सी बचे हुए उड़ान
मुठ्ठी से गिरती है इस समय चुप चुप दृश्य हवा
बातूनी तारे रात भर मुखर होकर बोलते हैं चुप चुप
दूसरा "हूं" "हाँ" करता है
जैसे मुंह में भूजा फांक कर बैठा हो.
तारे का टिमटिमाना भूजे को दाँतों से दरना है
कुर्र कुरर्र ...

केले के नए पत्ते नीम बेहोशी में हवा करते हैं
जैसे बथानों में नीद में खलल पड़ी हो गाय की
और टालने को उसने अपने कान के पंखे पटके हैं.
टेबल लैम्प की रौशनी छनती है दीवार के उस पार भी
चुप चुप प्रतीक्षा करो
एक ज़रा कुछ चुप्पी के अंतराल में कोई रील चल पड़ेगी.

चुप हुए तो बहुत बोलने लगे हम.
दिन बहुत बोलता है रात के चुप होने के लिए
जीवन बहुत बोलता है मृत्यु के लिए.
उजाले को पढने के लिए अँधेरे का पाठ चाहिए.

गमले की मिटटी खींच रही है आसपास का पानी चुप चुप
जैसे माँ और बच्चे नींद की जुगलबंदी के बीच
खींचना शुरू कर देता है बच्चा दुधियाये स्तन से दूध
और माँ बनती है उसके लिए आरामदायक आसन.

बालियों में पकता है दाना चुप चुप
डंका बजा कर नहीं आता ज्ञान
सिरहाने मीर के आहिस्ता बोलने की शर्त है.
बड़ा सा उपन्यास कहता एक शब्द "मानवीयता"
बहुत संयम के बाद भी प्यार में चुप चुप ही शोर करता है आता है स्पर्श
और जागने में चुप चुप पैर का अंगूठा चूसता सोता है सपना.