टू व्होम इट मे कंसर्न


देखा गया है कई बार ऐसा भी कि सत्तासीन पार्टी के गुणगान के एवज में अखबारी कागज़ एक उपहार है।

और कागज़ बचाने की मुहिम जब शुरू हुई तब तक संपादकों को प्रिंट आउट के बाद ही उन्हें गलतियां नज़र आने की बीमारी लग चुकी थी। अपनी सरकारी कुर्सी में धंसे संपादक महोदय का दिमाग खबरों को कागज़ बचाने की सारी कवायद तब भी बेकार जा रही है जब समाचार कक्ष से अगली सुबह सफाई के दौरान गैलनो गैलन कागज़, प्लास्टिक कप में बची चाय, पान और तम्बाकू की पीक में लिथड़े निकाले जा रहे हैं। और उनमें कूड़ेदान में पहले तह किए गए फिर ठूंसे गए  कागज़ अगले दिन जब जबरन निकाले जाते हैं तो उनकी शक्ल जंगल में किसी विलुप्त होती प्रजाति से मेल खाती सी लगती है। 

थाने या मेट्रो या जेल या बैंक या काॅलेज की दीवार में ‘जिसपर‘ तथा जिसकी गुमशुदगी का इश्तेहार अभी तक नहीं चिपका है। कि शहरों में मुश्किल से पिशाब करने की जगह तलाशने के बाद पिशाब निकलते रहने और उससे उपजते रिलेक्सेशन के बीच हम दे पाते हैं उन पर ध्यान।

कूड़ेदान में कभी कभी डर से भी डाल दी जाती है बर्बाद हो चुके कागज़ कि वरिष्ठ संपादक देखेंगे तो बहुत संभव है कि नहीं लग सकती है कैजुअल की अगली ड्यूटी या नहीं गिने जा सकते हैं अगली चाय वाले दोस्तों की जमात में या फिर नहीं ही मुस्कुराएगा वो संपादक अगली मुलाकात पर या ड्यूटी कक्ष में फिर से साथ काम करने की अनुशंसा नहीं होगी। इनते सारे डर के बीच भी कई बार चुपके से सुपर्द-ए- ख़ाक हो जाता है कागज़। हालांकि यह तथ्य बहस से परे है कि एडिटर इन चार्ज स्वयं इतने या इतने के दोगुने कागज़ खर्च कर आ रहे हैं।

नाक मुंह सिंकोड़ता है सफाई कर्मचारी कि पढ़े लिखे संपादक ज्यादा बर्बादते हैं कागज़।

अनपढ़ सफाई कर्मचारी द्वारा पच्चीस प्रतिशत छपे अक्षरों से ज्यादा पढ़ी गई है पचहत्तर प्रतिशत सफेद कागज़ का मौन।

आवश्यकता है...

जरूरत है एक कवि की
जिसके पास लच्छेदार भाषा हो
जो हर चीज को निहायत जरूरी बताता हो
राह भरमाने में माहिर हो
जिसके बारे में कम से कम जाहिर हो
आकार ऐसा कि ना गद्दी में ना सीप में आता हो
छुप कर रहता हो 
मगर आपकी आंखों को दागता हो
मुसीबत हो या झंझावात
या हो भावनाओं का चक्रवात
रूपिया कमाना हो या फिर पखाना हो
लिखने को मरण तुल्य बताता हो 
लेकिन डिमांड पर कविताएं लिखता हो 
पुन: उसे हाट पर मौजे की तरह दस का दो बेचता हो


आप उसे कुछ भी दिखा दें
देयर्स अ लिटिल बिट ऑफ सेल इन एवरीबडीज़ लाईफ की तर्ज पर 
कविता की पुर्नस्थापना करता हो


जो हवा में मुठ्ठियां भांज दे 
तो वे शब्द आपके दांतों को मांज दे
जन आंदोलन हो या टूथपेस्ट 
उपयुक्त शब्दों से कविता में उसका विज्ञापन कर उसे अर्जेंट बता दे


तर्क हो कुतर्क हो 
अपने लिए सर्तक हो 
दलदल में मुस्कुराता उतरे
डुबकी मार मछली खाए
एकादशी के बाप भी न जाने

महिला हो तो करूण कातर मुखड़ा हो 
जिसकी हर शब्द में पिछली सदी से हो रहा अत्याचार टपके
ऐसा सुनाते हुए अपने शैम्पू किए हुए बाल झटके
पुरूष हो तो फ्रस्ट्रेटेड कवि सा यौनजनित कुंठा हो 
मादा काया देखते ही कनखी से आम आदमी बदले
और स्तनों की गोलाई का अंदाजे से नाप ले

अच्छा खासा नेटवर्क हो 
नर हो या मादा हो मगर जरूरी ये कि
सफेद ब्लाउज सी पहनी हुई विनम्रता हो
जिसके नीचे कसे काले रंग के अंर्तवस्त्र से अहंकार झांकता हो 
सच, ईमानदारी, नैतिकता और प्रेम की झाझ बजाता हो
यदि समकालीन साथी पुरस्कृत हो
हमबिस्तर होने का आक्षेप लगाता हो

कर्मक्षेत्र को शतरंज की बिसात मान
सामने वाले की घोड़े की चाल देख अपनी दुलत्ती लगाता हो

इन शर्तों पर तो मैं खुद को ही खड़ा पाता हूं।
आपमें यह सब नकारते हुए करने की क्षमता होगी
जबकि मैं यह सब स्वीकारता हूं।
बेरोज़गारी की आंधी में,
मैं इसका सर्वोत्तम उम्मीदवार  हूं।
अत: खुद को इस नौकरी पर रखता हूं।