gatividhiyaan
------Saagar
मुद्दततें बीती किया सजदा नही
मुझे मस्जिद का पता नही
इश्क किया अफसाने बने बदनाम हुआ,
इससे बढ़कर कोई खता नही
दो अक्स अक्सर नज़र आते है,
दरमियाँ अब कोई परदा नही
इनसानी शकल लिया इमारतें खरी है,
हौसले के आगे कोई ज़ज्बा नही
एक झोकें में चलने लगे हम
कहाँ जाना है, बस कुछ पता नही
बचपना ओर मासूमियत दफ़न हो गयी
कई सालों से मैं हंसा नही
अजब से गंध है, कोहरे के जंगल में
खोजता बहुत हूँ पाता नही
Jhahaan में jhahannum भी देखे zannat भी
मगर कदम है की कहीं thahra नही
1 टिप्पणियाँ:
इश्क किया अफसाने बने बदनाम हुआ,
इससे बढ़कर कोई खता नही
वाकई सागर...इससे बढ़कर तुम्हारी कोई खता नहीं :) आज फुर्सत में बैठकर तुम्हें पढ़ा है...लगता है कई दिनों बाद उस कवि से बातें की हैं.
Post a Comment