आसमान से नूर की बूँदें बरस रही हैं
एक एहसान है कुदरत का
औ' अब इसके साथ कई शर्तें हैं
भाग-दौड़ से थोडा फ़ारिग होकर
भींच लो इसको मुठ्ठी में
तुमने अपना बचपन सदियों से नहीं जिया है
इस अन्तराल में जी लो.
ज़रा पता करो कहाँ से आ रही है
यह बूंदे ?
कितनी दूर से यह दिखाई दे रही हैं?
कितनी मोटी और भारी हैं ये?
हाथ में वो किताब रख लो,
नज़र में दूरबीन
इन भींगे हरे पत्तों पर की तहरीरें पढो
देखा! ... नज़र आने लगी ना वही
...भींगी सी साहित्यिक नवयौवना !!!
3 टिप्पणियाँ:
अपने मन की उमंग को सुन्दर शब्द दिए हैं।बधाई।
आसमान से नूर की बूँदें बरस रही हैं
एक एहसान है कुदरत का
औ' अब इसके साथ कई शर्तें हैं
अच्छे भाव लिए ......!!
भाग-दौड़ से थोडा फ़ारिग होकर
भींच लो इसको मुठ्ठी में
तुमने अपना बचपन सदियों से नहीं जिया है
इस अन्तराल में जी लो.
बहुत सुन्दर !
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