बेलौस बहाव


यह पल जो अभी बीत रहा है
कितना पुरसुकून कितना मंद
मैं अपने पैरों के रोओं का हिलना महसूस करा रहा हूँ
अपने साँसों की आवाज़ भी सुन रहा हूँ
यहीं ठीक इसी कमरे के बाहर
एक गोली की रफ्तार सी चलती दुनिया है
मैं कर रहा हूँ कोशिश
डायल पर खड़े होकर सूइयों को पकड़ने की
मगर कमबख्त सूई
मुंह फुलाये हरेक खाने को छोड़कर भाग रहा है
यह कहता हुआ कि सुबह होने पर
तुम भी इसी दुनिया के बेशर्म चेहरे हो जाओगे...

0 टिप्पणियाँ: