देखो,
कैसी थमी हुई सी दुनिया है...
कोई घटनाक्रम है, न कोई बदलाव
रजिस्टर में अब्सेंट हैं दोनों
शायद छुट्टी पर हो...
कारखाने का पहिया जाम है
स्कूल के बस्ते सुस्त है
चाँद भी पूर्णिमा के बाद मंद पड़ा है
सिगरेट सुलगाकर मैं भी तो यही सोच रहा हूँ
कि इसके ख़तम होने तक भी
नहीं बदलेगी दुनिया
'यह धुंआ खल्क होकर ही उड़ जायेगा'
कितना सूना है यह तुम्हारा लेखन
किरदार अपनी सीट पर नहीं दीखते
पांव पसारे सोये है
कोई हलचल नहीं है
मुल्क में,
औ' अलसाया सा वक़्त का पहिया घूम रहा है
कोशिशें सच्ची नहीं है
तभी तो...
'कोई घटनाक्रम है, न कोई बदलाव '
1 टिप्पणियाँ:
अच्छा है आप कम लिखते हैं,, आपका आलसीपन बहुत महत्वपूर्ण है,,,आलसी बने रहिये..ये बहुत ही अच्छी कविता है,,खासकर सिगरेट वाला बिम्ब {प्रत्यय} बहुत बेहतरीन है..जितना कम लिख रहे हैं, उतना अच्छा लिख रहे हैं..बेहतरीन कविता है वाकई..
Nishant kaushik...
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