जिस्म गोया एक खूंटा है
और मैं, इससे बंधा गाय
चरता रहता हूँ वही
बची-खुची-नुची घास !
इसी परिधि में...
जी चाहता है तोड़ दूँ कभी यह रस्सी
बहक जाऊँ कभी किसी और के खेत में
चर आऊं जी भर कर हरी घास
दिमाग खुले...
...कि दुनिया सिर्फ इसी घेरे भर नहीं है
कि आज़ादी के मायने क्या हैं ?
कि जीने का मतलब सिर्फ मर जाना नहीं है.
2 टिप्पणियाँ:
एक खूंटे से छुटेंगे तो दूसरे से बंधने का भय रहेगा, शायद.
excellent..!!
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