तारों से क्या शहद गिरते हैं ?
जो ताकते रहते हो उसे!
और उस बहुरूपिये चाँद में क्या है?
अय्यार है वो ज़ाहिल
तेरी प्रेमिका से कम नहीं है
भेद लेता रहता है, वो तेरा
फैशनबाज भी है स्साला!
सबकी आँखों को आइना बना
करता रहता है श्रंगार
देखो,
आज कैसे रग्बी बॉल बना बैठा है!
शायद...
तुम ज़मीं से ऊब गए हो
नाह
तुम्हारा कहीं ठिकाना नहीं होगा
आसमान में रहोगे तो
धरती के लिए तरसोगे
3 टिप्पणियाँ:
वाह सागर साहब............. गज़ब की सोच है आपकी...... सुन्दर रचना को जन्म दिया है आपने........... वाह चाँद भी क्या चीज़ है......... कैसी कैसी बाते लिखी जाती हैं उस पर
फैशनबाज भी है स्साला!
सबकी आँखों को आइना बना
करता रहता है श्रंगार
देखो,
आज कैसे रग्बी बॉल बना बैठा है!
वाह ...गुलज़ार की एक नज़्म याद आ गयी पढ़कर ..ठीक ठीक याद नहीं...इसलिए यहाँ नहीं चेप रहा ....कल चेपूंगा .ऐसे ही ....
hahaha ... amazing
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