चांदनी : आकर लेता हुआ जैसे
शंख !
रेत : जैसे नदी के टूटे हुए
दो पंख!
सरहद पर इमली के पेड़ की छाया!
देर रात तक, कोई नहीं
........................ आया !!!
कविता एक असल हरामज़ादी हो सकती है. वह विकृति पैदा करती है - महमूद दरवेश
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