जब भी देखता हूँ आसमान में
एक पेंडुलम नज़र आता है
बड़ी डरावनी सी आवाज़ आती है उससे
लोगों ने क़यामत की कल्पना की
फिर उसपर लिक्खा
मुझे तो वो मंज़र दिखता रहता है
रोज़ होता रहता है उससे
...नित-नवीन साछात्कार!!!
कविता एक असल हरामज़ादी हो सकती है. वह विकृति पैदा करती है - महमूद दरवेश
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1 टिप्पणियाँ:
टिप्पणी तो अन्य जगहों पे भी देना चाह रही थी ..लेकिन किसी कारन 'कमेन्ट बॉक्स ' नही खुला ..बेशक , बड़ा दिलचस्प लिखते हैं ...चाँद को क्या फर्क पड़ता है ,हम जो भी कह लें ..उसकी तो रौशनी भी उधारकी है ..!
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