एक तमाचा मारा था तुमने
कनपटी पर
जहाँ की धमकी याद रहती है
भयावह रूप में
नाचता रहता है
तुंरत उसके बाद का दृश्य
हवा में कम्पन करते
उसकी गूंज सुनायी देती रहती है
तुम्हारे उँगलियों के पोरों के
निशान मेरे सारे इन्द्रियों पर
कान के सहारे छपे है
कान से धुआं बन निकला था
बागी सदा!
जो सीधे आकाश में
ठहर गयी
बिना विखण्डित हुए
इसका दूसरा संस्करण नहीं छपेगा
इस पर कॉपीराइट तुम्हारा है...
2 टिप्पणियाँ:
इसका दूसरा संकरण नहीं छपेगा
इस पर कॉपीराइट तुम्हारा है...
superb......
कमाल हो यार...तमाचे में भी कविता ढूंढ लेते हो.
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