...उसके गर्भवती होने का कोई वक़्त नहीं होता
यूँ ही ...
राह चलते,
देखते-सुनते,
चिंतन-मनन करते
अचानक वो हो जाता है 'उम्मीद से'
दृश्य, कल्पनाएं...
घटनाएँ,
तकलीफें, आशाएँ
बहुत अंदर तक पैठ जाती हैं उसके
यही करते है उसके साथ संभोग
गुत्थम-गुत्थी में छूट जाते हैं
उसके पसीने
और 'चट से' हो जाता है वह गर्भवती
दर्द किलकरियाँ मारने लगता है
उठने लगती है हृदय में उसके
'प्रसव वेदना'
बेकली और बेबसी में वह
उठा लेता है कलम
और रच डालता है कलाम
हर कवि होता है एक औरत
और वेदना से ही होता है जन्म
'कविता' रूपी शिशु का...
3 टिप्पणियाँ:
wakai issa hi hota hai ek kavi k saath. bilkul sajeeb rachna na. bahut aache.
lajawaab.............behtreen.
kya khoob likha hai.
True but hilarious...
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