कमनीय तुम दुर्लभ
चंदन, तुलसीपत्र, मृदा प्रस्फुटित मणि
उपर्युक्त समर्पण !
अधर, दंत पंक्ति,
सुलझे रेशम के रेशे
जैसे केश सज्जा
भावः-विह्वल पुष्प
तन की सुगन्धित ऊष्मा
अस्तित्व का लोप,
मेरा लोप
कमनीय,
तुम दुर्लभ !!!!!
-----सागर
कविता एक असल हरामज़ादी हो सकती है. वह विकृति पैदा करती है - महमूद दरवेश
कमनीय तुम दुर्लभ
चंदन, तुलसीपत्र, मृदा प्रस्फुटित मणि
उपर्युक्त समर्पण !
अधर, दंत पंक्ति,
सुलझे रेशम के रेशे
जैसे केश सज्जा
भावः-विह्वल पुष्प
तन की सुगन्धित ऊष्मा
अस्तित्व का लोप,
मेरा लोप
कमनीय,
तुम दुर्लभ !!!!!
-----सागर
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1 टिप्पणियाँ:
तुम दुर्लभ !!!
सत्य है ? या खोज
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