कमनीय

कमनीय तुम दुर्लभ

चंदन, तुलसीपत्र, मृदा प्रस्फुटित मणि

उपर्युक्त समर्पण !

अधर, दंत पंक्ति,

सुलझे रेशम के रेशे

जैसे केश सज्जा


भावः-विह्वल पुष्प


तन की सुगन्धित ऊष्मा

अस्तित्व का लोप,

मेरा लोप


कमनीय,

तुम दुर्लभ !!!!!

-----सागर

1 टिप्पणियाँ:

दीपक बाबा said...

तुम दुर्लभ !!!



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