नज़रिया


सौ बातों की एक बात कहूँ.

'मुझे तुम्हारा शरीर चाहिए'

मैं भूल नहीं सका हूँ
वो जिस्मानी खुलूस,
पूरअमन वादी,
कोहरे भरी घाटियाँ,
जानलेवा मौजूं,
हवाई लम्स...

बासी चेहरे पर चस्पां चुम्बन...
बाहों से उड़ते परिंदे
औ' घेरे तोड़ने को
बगावत पर उतारू हुस्न...

जो फ़कत मुझे तबाह करने की योजना लिए
खुदा ने पर तुम्हें ज़मीं पर भेजा
मुझे यकीन है
यह मिलीभगत थी
एक तथाकथित षडयंत्र था

जिनसे मेरी बदनामी मशहूर हुई
मैं उसका होना चाहता हूँ

मैं तुम्हारे नाम पर शहादत चाहता हूँ.

मुझे मालूम है
ये हासिल है
मगरूर बाज़ारों में,
सस्ती गलियों में ,
पॉश इलाकों में,
बिअर बारों में,
चलती कारों में,

मगर दिल जज्बाती बच्चे की मानिंद अड़ा है
"मुझे केवल तुम्हारा ही शरीर चाहिए"

मुझे यह भी गुमान है
जब तुम चालीस साला होगी
तो ऐसे इज़हारों का बुरा नहीं मानोगी

फिलहाल,
इसे प्यार कह लो
या
मेरी बेशर्म-बयानी...

14 टिप्पणियाँ:

कुश said...

तो तुम अब सुधर रहे हो.. और माशाल्लाह क्या सुधर रहे हो..

तारीफ़ करने के लिए जो शब्द लिखना चाहता हूँ वो मिल नहीं रहे है.. अगर तुम्हे इसी तरह खुल्ला छोड़ दिया तो पता नहीं क्या क्या कर डालोगे.. हीरो तो तुम ही हो..

Anshu Mali Rastogi said...

मित्र, इसमें गहरा स्त्री-विमर्श है। कुछ और भी लिखें।

शिवम् मिश्रा said...

सौ बातों की एक बात कहूँ...............
बेहद उम्दा रचना !

ओम आर्य said...

ज्यादातर रचनाकार 'सम्भोग' से जुडी चीजों को भी प्रेम का रूप देते आये हें शायद जानबूझ कर क्यूंकि...पर आपकी कविताओं में 'सम्भोग' से जुडी चीजों में जो प्रेम का प्रवाह दीखता है तो जी चाहता है कि आपकी लेखनी कभी फुर्सत न पाए ...

वैसे जैसे आप मेरे पंखे (फैन) है, मैं भी हूँ आपका.

Satya Vyas said...

haahaahhaa
sardiyan janlewa hain sarkar.
ise or katil na banyen.
satya.

Dr. Shreesh K. Pathak said...

अरे सागर...! एक बार फिर गुस्ताखी....!!!
.....:)

Dr. Shreesh K. Pathak said...

....उम्दा की एहसासों की बुनकरी....

अपूर्व said...

ह्म्म..हद से बढ़ती जा रही हैं अब आपकी डिमांड्‌स..इल्तजा से लालसा पर और फ़िर सीधे-२ मार्के की बात कह दी आपने..बिना डिप्लोमेटिक टॉपिंग्स के..सही
आपकी इन पंक्तियों पर...

जिनसे मेरी बदनामी मशहूर हुई
मैं उसका होना चाहता हूँ
मैं तुम्हारे नाम पर शहादत चाहता हूँ.

कुछ कहना चाहता था..मगर न जाने क्यों ऐसी पंक्तियां हमेशा मूक कर जाती हैं..यह घोषित आत्मविसर्जन..जैसे कि वीरू टंकी पर चढ़ गया हो..और हाँथ मे बोतल भी न हो...

मैं भूल नहीं सका हूँ
वो जिस्मानी खुलूस,
पूरअमन वादी,
कोहरे भरी घाटियाँ,
जानलेवा मौजूं,
हवाई लम्स...

खूबसूरत भावों को उनसे भी खूबसूरत शब्दों के पैरहन पहनाना तो कोई आपसे सीखे...कैटरीना कैफ़ के ड्रेस-डिजाइनर्स सुन रहे हैं क्या??

फिलहाल,
इसे प्यार कह लो
या मेरी बेशर्म-बयानी...

और हमें तो यह खयाल दोनो सी बातों से आगे दौड़ लगाते लग रहे हैं..
..सही जा रहे हो गुरू :-)

डॉ .अनुराग said...

देर से दरवाजे पर आने के लिए मुआफी ......बस बाहर एक बोर्ड की ही काफी है ........सुभान अल्ला ............लाह

गौतम राजऋषि said...

आह!

"लालसा" को देखने आया था फिर से तो उसका एक्सटेंशन नजर आ गया....

क्या लिखते हो मियां!

"जो फ़कत मुझे तबाह करने की योजना लिए खुदा ने पर तुम्हें ज़मीं पर भेजा मुझे यकीन है यह तथाकथित षडयंत्र था"

sagar at his best..यकीनन!

रवि कुमार, रावतभाटा said...

बेहतर...
प्रेम की अवधारणा को चुनौती दे रहें हैं आप?
भावुक लोग आपके लिए एक स्तम्भ बनवा देंगे...

Jayram Viplav said...

वाह गुरु ! नाम के अनुरूप ही लेखनी के गागर में भी शब्दों का सागर भरा हुआ है .आजकल नए लिखने वालों में बहुत कम लोग शब्दों पर संयम रख पाते हैं .यहाँ भी शब्द "सब दो" का भाव लिए हुए है .सीधे समर्पण करने को बोल रहे हैं .


हमें याद आरही है गुनाहों के देवता की , जहाँ चंदर विनती से प्रेम विषयक बात-चीत के क्रम में प्यार में लड़की के शरीर की चर्चा करते हुए कहता है कि सेक्स ही प्यार है ,प्यार का मुख्या अंश है,बाकी सब कुछ उसकी तैयारी है ,उसके लिए एक समुचित वातावरण और विश्वास का निर्माण करना है .

Ancore said...

सौ बातों की एक बात कहूँ.
'मुझे तुम्हारा शरीर चाहिए'
.
.
:-) he he he

अनिल कान्त said...

one of your best