आंगन में एक तेजपत्ते का पेड़ रहता था।
तेज़ी से अपने फर उगाती गौरेये सा
नीले गोटेदार कसा स्कार्फ पहन, कटोरी से पानी चुगते,
दाना खाते कुबेरा बीट करता कबूतर सा
सब हलचलों के बीच अपने पत्तों का पंख गिराता था।
आंगन में एक तेजपत्ते का पेड़ रहता था।
जब भी हमारी गेंद बिना पलस्तर छाती भर बाउंड्री पार जाती
उसके कोटर पर पैर का अंगूठा फंसा ऊपर चढ़ते जाते
हथेलियों को सहारे खातिर जिसके तने में कई गांठें थीं
हम सीधे होते जाते और बाउंड्री का गिरेबां पकड़ लेते
उस वक्त मुझे ऐसा ही लगता यह पेड़ बाढ़ग्रस्त इलाके की बस्ती का कोई रहवैया है
जिसके बच्चे स्कूल जाने को हैं
यह बाप अपना कद छोटा कर नीचे बैठ
अपने कंधे पर बच्चों को चढ़ने का इशारा करता है
और फिर उसके नन्हें कदमों के अंतराल का ख्याल कर
पहले अपने घुटने को सीढ़ी का पहला पायदान बनाने को कहता है।
अक्सर जब पुरबाई चलती सारा घर तेजपत्तों की हल्की गंध से महकने लगता
मुझे याद नहीं आता हमने कभी तेज़पत्ता बाज़ार से खरीदा हो।
मिश्रा अंकल सुबह दातुन करते आते और
हालचाल पूछते पूछते आठ-दस पत्तियां लेते जाते
शरमाइन सत्यनारायण कथा का न्यौता देती और बातों बातों में ले जाती
फलाने की बेटी देखने रिश्तेदारों के लिए चाय में
स्वाद के लिए भी पत्तियां तोड़ी जातीं।
मुझे याद है पहली बार बबली से मिलने जाते समय
मैंने दो पत्तियां इसलिए चबायी थी कि
यह माउथफ्रेशनर का काम करता है।
और जिस पत्ते को उल्टा कर पहली बार उसके
गाल से कान के पीछे तक फिराया था
वो आज भी डायरी में रखा है।
पम्मी कभी वन की राजकुमारी बनती तो
अपने हेयरबैंड में इसका एक पत्ता सीधा खड़ा कर दबा लेती
इस तरह तेज़पत्ता लापरवाही से हमारी जिंदगी में शामिल था।
उसकी याद आते ही मेरा अतीत उसकी हल्की नशीली खूशबू से महक उठता है।
उसकी सुगंध के साथ ही ठंडे पड़ गए सारे चेहरों से धुंआं उठने लगता है।
याद की पतीली उन धुंओं से गर्म हुई जाती है।
मैं अत्यधिक दबाव में आ प्रेशर कुकर सा घनीभूत हो कविता लिखने लगता हूँ।
और जब नहीं संभाल पाता मेरा देहरूपी बर्तन यह दबाव भी तो
आँखों से पानी के बुलबुले निकलने लगते हैं।
हम भाई बहन के छत से अपने टूथपेस्ट मिले थूक को
दूर तक फेंकने के खेल का गवाह यह पेड़ रहता था
आंगन में एक तेजपत्ते का पेड़ रहता था।
आज जब मकान मालकिन ने बातों बातों में यह कहा
उसने जाना ही नहीं कि तेज़पत्ते का पेड़ होता है!
तो मुझे यह एक शहर की विफलता लगती है।
बचो, कहानीकारों!
ये कहने के लिए कि यहाँ आदमी रहता था
आंगन में एक तेजपत्ते का पेड़ रहता था।
9 टिप्पणियाँ:
इस तरह तेज़पत्ता लापरवाही से हमारी जि़ंदगी में शामिल था।
उसकी याद आते ही मेरा अतीत उसकी हल्की नशीली खूशबू से महक उठता है।
उसके सुगंध के साथ ही ठंडे पड़ गए सारे चेहरों से धुंआं उठने लगता है।
याद की पतीली उन धुंओं से गर्म हुई जाती है।
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कविता की इन पंक्तियों को पढ़ कर मेरा भी मन तेजपत्ते की गंध सा महकने लगा है. बेहद बेहद बेहद खूबसूरत कविता है सागर...ऐसी खुशबू से भीगी कविता बहुत सालों में नहीं पढ़ी थी.
आपकी कविता पढ़कर अपने घर की सुगंध आ गई, जहां तेजपत्ते के कम से कम बीस-पच्चीस पेड़ हैं...
किसी भी परिवेश की महक जब कभी भी याद आती है, स्मृतियों के पन्ने खुल जाते हैं।
तीसरी या चोथी कक्षा की किताब में हुआ करती थी यह कविता -
यह कदम्ब का पेड़ अगर मां होता ज़मुना तीरे,
मैं भी इस पर बैठ कन्हया बनता धीरे -धीरे...
ले देती बांसुरी तुम दो पैसे वाली,
किसी तरह नीचे हो जाती यह कदम्ब की डाली..
ना कदम्ब, ना जमुना, ना बांसुरी पर कवि और कन्हया दोनों यहाँ ...
तुमने सहेज लिया ना पेड़ को और उसके पत्तो की खुशबू को भी.... ऐसे ही हरसिंगार मेरे लिए है जैसे तुम्हारे लिए तेजपत्ता
बहुत लंबा लिख रहे हो | कदाचित कविता का कोई नया प्रारूप हो | क्षमा ....... पूरा नही पढ़ पाया | वापस वापस 2009 वाले सागर से मिलने गया और सारी कविता बाँच दी| दो साल लंबा समया होता है कमेन्ट करने के लिए :)
http://bulletinofblog.blogspot.in/2012/06/2.html
हाँ न.....
हरसिंगार था कहीं....गुलमोहर था...बबूल और नीम भी....
मगर तेजपत्ते में छुपी यादों की महक शायद अब तक रची बसी होगी .....
अनु
सुनो ना, फिर लौटो लेखनी पर। ऐसी कवितायें कहीं भी पढ़ने को नहीं मिलती। प्लीज। किसी को इतना रिरियाया नहीं करते। अभी लौटे हो घर से, देखो ना कितना कुछ रखे होगे सकेर के...कुछ बाँटो हमारे साथ भी। सब अकेले अकेले जी लोगे?
सागर। प्लीज। फिर लिखो।
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