मैं याद दिला दूँ तुझे
जहीर तुम्हें आना था, वक्त पर
तुम्हारी अम्मा अकेले पी एम सी एच जाती है.
अफ़सोस है कि व्यक्ति एक ही है पर
पर तुम्हारे अब्बा से ज्यादा अपने शौहर का एहतराम करती है.
जहीर तुम्हें आना था ना
हाल्ट पर बिकते बासी लाल साग ही लिए चले आते
जहीर तुम्हें कुदाल चलाना था
उससे दिल की गिरह बैठे मिट्टी के साथ हल्का होता है.
जहीर तुम्हें अप्रैल में कोयल को चिढाना था
तुम दोनों में अंत तक हूकने की बाज़ी लगनी थी
जैसा सिद्धिकी (बहन) के साथ करते हो.
हारून के होने का ख्याल बुनना था
(अगर संभव होता तो बड़ा भाई, जिसे गरीबी के कारण पैदा नहीं होने दिया)
जब भी घर आओ तो
तराजू पर तौलना था
अपने पिछले फैसले,
क्या खोया और क्या पाया जैसे सवालों के जवाब
किसी पेड़ पर जूनून में लिखे मुहब्बत के नाम
जो अब खरोंच से लगते हैं
जहीर तुम्हें यह कबूलना था
वक़्त रहते.
जहीर तुम्हें कविता लिखना था,
जीभ उल्टा कर नाक पर चढ़ा कर मगन होकर
लट्टू के दरारों में कस कर डोरे कसने थे
बाजू फड़का कर खुरदुरी ज़मीन पर घुमाते-घुमाते हथेली पर लेना था.
तुम्हें आना था ना यार, वक्त रहते
तुम आ जाओ ना वक्त गुज़ारने, वक़्त रहते....
12 टिप्पणियाँ:
पी एम सी एच - PMCH - Patna Medical College Hospital
prbhavi kavita...khoob likha..likhte raho bhai..
ज़हीर हम सब के भीतर सांस लेता है मगर उसे इस शिद्दत से कौन याद दिलाता है ? बहुत खूब !!
मगध में कमी नहीं है विचारों की...:)
तुम्हें आना था ना यार, वक्त रहते
तुम आ जाओ ना वक्त गुज़ारने, वक़्त रहते....
gahri baat
Aah !!
tumhari kalam se hi aisi yaad nikal sakti hai
leo bhai sagar....jahir 'aa' chuka...
aap to bas likhte raho....'jahir' aata jata rahega........
sadar.
waqt rehte...aapne yaad kiya hai to uska aana mukarr hai... :)
lekhan shaili anoothi hai!
पहली पन्क्ति में "तुझे" को दूसरी में "तुम्हें" में क्यों बदल दिया ? "तुझे" में जो अपनापन है वह "तुम्हें" में dilute हो जाता है.
बहुत ही बेहतरीन अभिव्यक्ति!
गहन अभिव्यक्ति
Wow!
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