कल पूरा कर दूंगा
किताब में कुछ पन्नो के बाद अटकी डंठल लगी गुलाब भी कुछ पन्ने बढ़ कर ठहरेगी
महकाएगी उन नज्मों को
जो बिना पढ़े बासी लगते हैं
बोलकर पढो तो रूह जागती है.
किनारे से एक टुकड़ा फाड़ कर चख भी लूँगा
कागज़ घुलता है जुबान पर तो
कारखाने की चिमनी में कोई लोहा पिघलता है.
अपना दर्द गलता है.
कच्ची घानी सरसों का तेल भी ठोंक दूंगा छुटकी
तुम्हारे माथे में
शांत मन से ज़ार-ज़ार रो लेना तुम
कोई इमोशनल सिनेमा देखते हुए
एक अंतर्देशी भी लिखना है, घर पर
जिसको लिखने में पहले बाधा नहीं आती थी , बेलाग लिखते थे,
मगर अब माथे पर बल पड़ते हैं
कलम कुंठित हो जाती है
और
बहुत सारा जगह छूट जाता है.
(प्रेम पत्र के लिए पूरी कोपी भी कम पड़ रही है)
पनीर की सब्जी बनाते हैं कल जानां
और आज देर तक जगकर तारे गिनते हैं.
कल जब आधे दिन पर पहले चौंक कर फिर
फिर "थैंक गोड, इट्स संडे" कहोगी तो
मैं कुरते में अंगराई तोड़ते तुम्हारे हुस्न की तारीफ कर वापस खिंच लूँगा.
10 टिप्पणियाँ:
@ (प्रेम पत्र के लिए पूरी कोपी भी कम पड़ रही है)
:)
यही होता है।
Wow..कविता पढ़ते पढ़ते पूरा सिनेमा देख लिया.....एक कविता में स्टेप बाइ स्टेप हालत और किरदार को ढाला है वो बहुत खूब है
"वॉट आ रिलैक्सिंग सन्डे"... ये सन्डे हफ़्ते में बस एक ही बार क्यूँ आता है :)
इस बार के चर्चा मंच पर आपके लिये कुछ विशेष
आकर्षण है तो एक बार आइये जरूर और देखिये
क्या आपको ये आकर्षण बांध पाया ……………
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (20/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
ओह! क्या भाव भरे हैं।
निराला और सुन्दर अंदाज़!
छोटी सी बात लिखने के लिये इतनी लम्बी लिखाई।
सुधरोगे नहीं !
सुधरोगे नहीं!
हमेशा जरूरी काम कल के लिये टाल देते हो।
or aaj dher raat jagkar taare ginte hain.....saagar me dubki lagi hai baabu bina bheege koi bahar aa he nahi sakta...man bheeg gaya, taare ginna aaj bhi outdated nahi huya
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