उसके लिए
तुम्हारा मेरे बीच होना भी जरुरी था
पर तुम निर्दयी की तरह आये
और सम्भोग के बाद मंद पड़े
मेरी रानों पर सुलगता सिगरेट मसल कर चले गए.
देखो, बहुत महान नहीं होता प्रेम
कि जिसकी मैं उपलब्धियां गिनवाता फिरूं
यह एक असुरक्षा से उत्पन्न सरकार के
‘परिवार कल्याण सम्बन्धी कुछ सूत्री कार्यक्रमों’ जैसा होता है
जिसे सभ्यता की डोर में पवित्र करने की कोशिश की जाती है.
जहां ‘खामखां राख में चिंगारी खोजने’ की उपमा
तुम्हारे जिज्ञासु और आशावान व्यक्तित्व का परिचय तो देती है
(दोस्त, यह परिचय नहीं. इससे भलीभाँति अवगत हूँ)
वहीँ मेरे लिए यह उपमा
मेरे नामर्द होने की जानकारी थी.
जंगल में आग लगती है तो
हवा के पास दो ही रास्ते होते हैं
चुप रहना या गुज़र जाना
...
और जंगल जलता है
हरियाली जलती है.
मेरे बाद, बूढ़े होने पर एक काम करना तुम
इन कविताओं को भी जला देना
और फिर लिखना एक खत
कि वो मानवता के लिए नहीं था
बल्कि उन अवांछित सपनों को
मैंने गिरा दिया है सम्बन्ध के बाद ठहरे
अनचाहे गर्भ की तरह.
और फिर रोपा है एक पौधा...
(...एक दोस्त के लिए)
8 टिप्पणियाँ:
उदास करते-करते मुस्कुराने की एक वजह दे दी तुमने एक पौधा रोपकर.
बढ़िया !
Shukra hai aapne ek paudha rop to diya...
भावों की नग्नता को ईमानदारी से उतारा है आपने।
sagar ji ....remarkable!
आसान नही है इन कविताओं को समझना. खास कर अगर इसे किसी सागर नामके बदमाश ने लिखी हो. कुछ शब्द ऐसे डाल देते हो जिसके सबके अपने-अपने बिम्ब हैं. वे बिम्ब फिर कविता के अर्थ के बीचोबीच आने लगते हैं, उनसे निपटना होता है अगर इस बदमाश की बात समझनी हो तो. मैंने तो अपनी हालत बयां कर दी.....!
भई सागर, सुबह -शाम क्या खाते-पीते हो, मीनू मेल कर देना.....!
सच्चाई एक प्याज...कितने परत समझाओगे मित्र...देखो आखीर में..........
शब्दों की धार दिन-ब-दिन तेज़ होती जा रही । मगर कहने का अंदाज़ न बदला है, न बदलने देना !
sir jij
kya khoob likha hai
ek ek shabd man me gahra gasta hua ... shabd apne aap me bhaavnao ko naya roop de rahe hai ..
bahut sundar rachna
badhayi
vijay
kavitao ke man se ...
pls visit my blog - poemsofvijay.blogspot.com
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