कवि कह गया है - 8



साफ़ मझोले बर्तन में पानी का आकार लेना,
चलते-फिरते गायब हो जाना,
विदाई के आखिरी क्षणों में अपनी वसीयत कर देना,
अपने हाथों अपना अंतिम संस्कार करना,
जैसे तुमसे प्रेम करना.

किसी संप्रभु राष्ट्र के राजपथ पर मार्च करना,
सम्भोग के बाद संतुष्टि की मुस्कान आना,
घोर पाप के बाद ईश्वर के सामने अंतिम श्लोक का बुदबुदाना; त्राण माँगना
जैसे तुमसे प्रेम करना.

जीवन पर्यंत सपनों से पार ना पाना,
पाठशाला के मुख्य द्वार पर ठोकर खाना,
फनफनाती शराब में अपना जीवन गर्क करना,
फकीरों की तरह तीनो जहां दुआओं में देना,
कव्वाल का कव्वाली गाना,
जैसे तुमसे प्रेम करना.

जलती चिता से आग ले बीड़ी सुलगाना,
बागी का बगावत करना,
क्रांतिकारी का तत्कालीन समय में शहीद होना,
फिर इसे इतिहास की किताबों में पढ़ना
जैसे पुनः तुमसे प्रेम करना.

18 टिप्पणियाँ:

Shekhar Kumawat said...

जलती चिता से आग ले बीड़ी सुलगाना,
बागी का बगावत करना,
क्रांतिकारी का तत्कालीन समय में शहीद होना,
फिर इसे इतिहास की किताबों में पढ़ना
जैसे पुनः तुमसे प्रेम करना.

bahut khub

bahut veer ras he yar

shekhar kumawat

http://kavyawani.blogspot.com/

ओम आर्य said...

विदाई के आखिरी क्षणों में अपनी वसीयत कर देना
फनफनाती शराब में अपना जीवन गर्क करना
क्रांतिकारी का तत्कालीन समय में शहीद होना

फिर इसे इतिहास की किताबों में पढ़ना
जैसे पुनः तुमसे प्रेम करना

shukriya, is tarah prem karne ke liye...

DC said...

प्रीत के हैं अंदाज़ निराले !!!

संजय भास्‍कर said...

कई रंगों को समेटे एक खूबसूरत भाव दर्शाती बढ़िया कविता...बधाई

वाणी गीत said...

विदाई के आखिरी क्षणों में अपनी वसीयत कर देना,
अपने हाथों अपना अंतिम संस्कार करना,
जैसे तुमसे प्रेम करना....

यह प्रेम सबसे अनूठा निराला है ...
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ...!!

कुश said...

अब लेखनी पर ध्यान दो कुछ दिनों.. इसे जरुरत है अब

डिम्पल मल्होत्रा said...

चलते-फिरते गायब हो जाना..
घोर पाप के बाद ईश्वर के सामने अंतिम श्लोक का बुदबुदाना..
पाठशाला के मुख्य द्वार पर ठोकर खाना..
फकीरों की तरह तीनो जहां दुआओं में देना..
जैसे तुमसे प्रेम करना..

क्रांतिकारी का तत्कालीन समय में शहीद होना,
फिर इसे इतिहास की किताबों में पढ़ना
जैसे पुनः तुमसे प्रेम करना..

हैरान हूँ इन अटपटे
अटे पड़े
विचारो से..आखिर आये कैसे?
बेहतरीन कविता.

दर्पण साह said...

चौथी या पांचवी बार आया हूँ, यक़ीनन आपकी सबसे बेहतरीन कविता. (मैंने "बेहतरीन कविता में से एक" नहीं "सबसे बेहतरीन" कहा... )
शायद बिम्बों और उपमाओं के साथ खेलना और किसी को खेलते हुए देखना मुझे पसंद है इसलिए ऐसा लगा हो मुझे. पर कमेन्ट भी तो अकेले में ही कर रहा हूँ ना?

विदाई के आखिरी क्षणों में अपनी वसीयत कर देना,
फकीरों की तरह तीनो जहां दुआओं में देना,
जलती चिता से आग ले बीड़ी (Saagar Brand ;) )सुलगाना,



और ये तो एंटी क्लाइमेक्स है भाई सा'ब...

क्रांतिकारी का तत्कालीन समय में शहीद होना,
फिर इसे इतिहास की किताबों में पढ़ना
जैसे पुनः तुमसे प्रेम करना.

दर्पण साह said...

A (Censored ) Comment

सम्भोग के बाद संतुष्टि की मुस्कान आना,

http://www.youtube.com/watch?v=zZEoUPd7mLs

;)

kshama said...

साफ़ मझोले बर्तन में पानी का आकार लेना,
चलते-फिरते गायब हो जाना,
विदाई के आखिरी क्षणों में अपनी वसीयत कर देना,
अपने हाथों अपना अंतिम संस्कार करना,
जैसे तुमसे प्रेम करना.
Behad purzor lekhan hai!

डॉ .अनुराग said...

किसी संप्रभु राष्ट्र के राजपथ पर मार्च करना,
सम्भोग के बाद संतुष्टि की मुस्कान आना,
घोर पाप के बाद ईश्वर के सामने अंतिम श्लोक का बुदबुदाना; त्राण माँगना
जैसे तुमसे प्रेम करना.


मुझे ये लाइने हिट कर गयी है भाई ....निक कार्टून चैनल पर कभी "ओगी" देखना .....सच्ची तुम्हे बहुत विम्ब मिलेगे ....टाइम बतायुं ...दोपहर साडे तीन बजे

sonal said...

बिलकुल ताज़ा रचना ,अनसुने बिम्ब बहुतखूब .. एक कविता को कई बार पढ़ना पड़ेगा

गौतम राजऋषि said...

नहीं, दर्पण की इस बात से सहमत नहीं हूँ कि ये तुम्हारी सबसे बेहतरीन रचना है। नो वे...!

बिम्ब कुछ यकीनन हट कर के हैं और खास कर अपने "प्रेम" से इन तमाम बिम्बों की उपमायी का अंदाज...लेकिन इससे बेहतर तुम कई बार हो चुके हो अपनी पिछली कविताओं में और मुझे यकीन है कि अभी बहुत-बहुत बेहतर तुम्हारा "तुम" आना शेष है अभी...

अपूर्व said...

गौतम जी की बात से मै भी सहमत हूँ..अभी बहुत-बहुत बेहतर आपका ’आप’ आना अभी शेष है..कुछ बेहतरीन उपमाएं संजोयी हैं आपने कविता मे..विशेषकर अंतिम स्टैंजा प्रेम को वैयक्तिक धरातल से उठा कर सामाजिक सरोकारों से जोड़ कर देखने की कोशिश करता है..बढ़िया कविता!

दर्पण साह said...

@Gautam sir/Apoorv:
शायद बिम्बों और उपमाओं के साथ खेलना और किसी को खेलते हुए देखना मुझे पसंद है इसलिए ऐसा लगा हो मुझे.

But for me This is the best poem of sagar (obviously until now) (that answers :आपका ’आप’ आना अभी शेष है. too)

PS:Hindi tool is not working.

Fauziya Reyaz said...

waah...bahut khoob likha hai

mukti said...

जीवन पर्यंत सपनों से पार ना पाना,
पाठशाला के मुख्य द्वार पर ठोकर खाना,
फनफनाती शराब में अपना जीवन गर्क करना,
फकीरों की तरह तीनो जहां दुआओं में देना,
कव्वाल का कव्वाली गाना,
जैसे तुमसे प्रेम करना.
.
जलती चिता से आग ले बीड़ी सुलगाना,
--ये शब्द कहाँ से लाते हैं कविवर !

अनूप शुक्ल said...

बढ़िया है। प्रवीण शाह के बयान से सहमत होने का सोच रहे हैं लेकिन पहले इसके पहले की कवितायें बांच लें।