कवि कह गया है -9



बचपन, मिथक
चाँद- मामा, बुढिया, चरखा, सूत,
गोदी, लोरी.

मीठी लड़की, मिसरी धडकन,
सीने और तकिये की बातचीत,
करवट, रतजगे, फुर्सती वादे,
खत, चाँद, चोकलेट, बहलावा,
राख !

डर, बीमारी, अतीत
यादें, अनहोनी
धोखा, बुखार

सपने, कारनामे, कीर्ति,
क्रांति, बदलाव, स्वर्णिम भविष्य,
गौरवशाली इतिहास
देश, आधारशिला

कुपोषण, न्याय
कुर्ते, कुर्सी,
गिरफ़्तारी, भूख, यातना
स्टेशन, डंडा, कुर्की-जब्ती, जेल
-.......- मुजरिम !!!

नौकरी, महीना, वेतन, जीवन- शैली,
पुरखें, संदूक, विरासत
रिश्वत, दलाली,
आटा-दाल, मसाला, सब्जी

भांग-शराब, ब्लू फिल्म,
पसीना, औरत, देह गंध, गर्माहट, संसर्ग सुख
बेहिसाब गिनती के सिर

अकाल, बाढ़, ठिठुरन, जून
कटे गर तो नदारद खून
आलीशान बंगला;
दकियानूस जंगला

जिंदगी ! यथार्थ, हालात, गवाही, भलाई, मजबूरी, ठीकरा

अक्सर हम अपने पूर्वाग्रहों के बल पर लिखते हैं कविता

25 टिप्पणियाँ:

दिलीप said...

poora bachpan aankhon ke saamne se guzar gaya...

bahut bahut dhanyawad...

http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

रवि कुमार, रावतभाटा said...

हमारा परिवेश...हमारे पूर्वाग्रह रचता है...
और शायद...कविता, हमें इनसे लड़ना सिखाती है...
कविता शायद इनके बल पर नहीं...इनके निर्बल होने पर ही उपजती है...

जैसा कि यह कविता...और आपकी अन्य कविताओं ने हमें सिखाया है...

वाणी गीत said...

पूर्वाग्रहों के बल पर ही लिखते हैं कविता ...
क्या बात ...!!

ओम आर्य said...

सीधे दिल से बोल रहें हैं डाइरेक्ट कि मजा आ गया बॉस...

ओम आर्य said...

पता नहीं क्यूँ..ये सीरियस कविता पढ़ के भी दिमाग में एक 'चुटकी' आ रही है
कि
उन्होंने देखे भी
हमारे सीने खून से लथपथ
और मुझे बोलते हुए सुना भी
कि देखो ये दिल निकाल के लाया हूँ

पर धीरे से पूछते भी हैं कि
कहीं ये जज्बा पूर्वाग्रह से ग्रसित तो नहीं....

कुश said...

अगर हर दो चार शब्द के बाद एंटर मारके अगले दो चार शब्द नहीं लिखते तब भी क्या ये कविता ही लगती??

प्रयोग करने वाले लोग मुझे पसंद है.. पर पहले उपरोक्त प्रश्न का उत्तर दिया जाए पार्थ.!

सागर said...

सारे फैसले आप लोग ही करेंगे यानि पाठकगण... मैं सामान्यतः ब्लॉग के माध्यम से बहुत कम बात कर पाता हूँ, यह मेरी कई कमियों में से एक है. अभी यह उत्तर इसलिए की आपसे सीधे-सीधे पूछा है....

प्रस्तुत प्रश्न गौतम जी के ब्लॉग पर पहली बार मैंने कंचन सिंह चौहान द्वारा देखा था ...

जहाँ तक मुझे लगता है चीजें आपस में जुडी होनी चाहिए... यहाँ मैंने जीवन - चरण का एक चित्र खींचा है... कविता ऐसी चीज़ है जिसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है... आप कितनी भी बातें कर लें. हाँ सीखने को बहुत कुछ मिल सकता है...

कैसे परिभाषित करेंगे आप कविता को ? मैं तो देखता हूँ जो कहा जाता है उसका उल्टा भी उतना ही सच होता है... आप कन्नेक्ट हो सकें तो कविता है पर कई बार यह भी गलत है.

रघुवीर सहाय ने कविता को फिर से परिभाषित किया था.

यह मैं अपने आपको डिफेंड नहीं कर रहा... अगर कविता गलत है या कमजोर है तो ऐसे ही बिंदास बोलने का

Shekhar Kumawat said...

ji

Parul kanani said...

kaplna ki udan anant hai sagar ji :)

डिम्पल मल्होत्रा said...

हम्म ..इन शब्दों के अर्थ कौन लिखेगा ?

अपूर्व said...

भई कविता है या नही यह तो मुझ अज्ञानी को पता नही..मगर अगर जिंदगी की रेलगाड़ी के सफ़र के रास्ते के स्टेशनों की लिस्ट देने की मंशा रही लेखक की तो पोस्ट अपने इरादे मे सफ़ल है..मगर लेखक की परिचित ’मारक’ शैली का अभाव है..!
हाँ यह सोच रहे हैं कि जींदगी पे दुइ-चार कविताएं हमहू लिख डालें..शब्दकोश मिल ही गया है ;-)

डा. अमर कुमार said...


कुछ कह नहीं सकता... बस यही कि,
चुँनींदा शब्दों से बना करीने का एक कोलॉज़ !
हो सकता है कि कालाँतर में यह प्रयोगधर्मी की उपाधि भी प्राप्त कर ले ।

हरकीरत ' हीर' said...

आपका ये पूर्वाग्रह यूँ ही बना रहे ....
और आप यूँ ही ज़िन्दगी की गवाही देते रहे ....

TRIPURARI said...

कहते हैं कि सागर की गोद में बहुत कुछ ऐसा भी है जिसके बारे में इंसान को पता नहीं | मैं तो बस इतना कहता हूँ कि इस सागर की गोद में इतना कुछ है जिसके बारे में खुद सागर को भी पता नहीं है | देखिए ना एक बार डुबकी लगाई तो कितना कुछ निकला | उम्मीद है इसी अदा में फिर कभी डुबकी लगाई जायेगी | दुआएं...

डॉ .अनुराग said...

अक्सर हम अपने पूर्वाग्रहों के बल पर लिखते हैं कविता

ओर वो हर उम्र ओर हर दिन के साथ तब्दील होता है ....

स्वप्निल तिवारी said...

hmm... kavita.. achhi to lagi hai .. bilashaq.. par kya zindagi me hone wale sare ehsaas purvagrah grasit nahi hote...jaise chhot lage to rona hi hai ..bhoookh lage to khana hi hai .. ( alag baat hai kabhi kabhi chhot lagne par aadmi ro nahi pata..aur bhookh legne par kha nahi pata ..to hum use "leek se hatna" kah lete hain ... )

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

पूर्वाग्रह तो है...!

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

यार, बस इतना कहना है कि तुम्हारी ’कवि कह गया है’ सीरीज शुरुआत से एक ही दिन पढनी है ताकि सनद रहे और हो सकता है तुम्हारी डोज़ो से हमरा कवि भी बोले :)

बी राईट बैक..

mukti said...

पूर्वाग्रहों के बल पर हम लिखते हैं कविता... या कवितायें अक्सर हमें बना देती हैं पूर्वाग्रही... बहुत सी बातें, जो हमने नहीं झेली होतीं, वो किसी दूसरे की कविता से महसूस कर ली जाती हैं... इस कविता के बारे में डा. अमर कुमार से सहमत... "चुँनींदा शब्दों से बना करीने का एक कोलॉज़"

देवेन्द्र पाण्डेय said...

शब्द दर शब्द ढूँढता रहा अर्थ कि कवि कहना क्या चाहता है...!

Amrendra Nath Tripathi said...

सागर भाई ,
बहुत कुछ क्या कहा जाय कविता पर ?
अगर आप खुद के लिए ही कविता लिखते हैं और
कविता की परिभाषा आपकी एकदम निजी है तो
बेशक यह कविता है , क्योंकि आप तो समझ ही
रहे हैं , कोई और समझे चाहे नहीं !
पर ,
अगर दूसरों के लिए भी कविता का कोई
अर्थ है अथवा होना चाहिए तो बेशक मैं आपसे सहमत
नहीं , क्योंकि अ-सम्प्रेषणीयता को कैसे जायज
ठहराऊं ! ऐसी स्थिति में प्रयोग सहज नहीं
बल्कि बलात से लाये गए लगते हैं !
..............
अंततः यही कहूंगा की मेरी कोशिश अपने आलोचक-मन
के साथ इमानदार रहने की होती है और एक कवि
की कोशिश अपने कवि-मन के साथ इमानदार होने की
होनी चाहिए ! ''आत्म-समीक्षा से युक्त आत्म-विश्वास'' से बड़ा
कोई आलोचक नहीं होता ! आभार !

अपूर्व said...

भई बड़े दिनों से कवि चुप बैठा है..अब कवि कब कह कर जायेगा कुछ? ;-)

सुशीला पुरी said...

अच्छा प्रयोग !!! यूँ ही 'पूर्वाग्रह'बना रहे .....

गौतम राजऋषि said...

तुम्हारे प्रयोग अचंभित करते हैं सागर और सच मानो, जलाते भी हैं कि ये आईडिया कमबख्त हमें क्यों नहीं आया...

वैसे यहां डा० अमर साब की टिप्पणी से शत-प्रतिशत सहमत हूँ। खास बात इस रचना की है ये अपनी बेतरतीबी में ये तमाम शब्द खासे तरतीबबार हैं...

पता नहीं, पूर्वाग्रह बेतरतीबी में है या इसके तरतीबबार होने में...?

अनूप शुक्ल said...

ये कविता है कि आत्मस्वीकारोक्ति? अनुभव भी तो एक पूर्वाग्रह ही है।