कवि कह गया है - 1

वो तमाम जगहें
जो नक्कारखाने के रूप में चिन्हित किए गए हैं
जहां कि
दीवारों पर बेरोज़गार युवक गालियां लिखकर
अपनी कुंठा मिटाता है
औ' उसे गीला करते वक्त लोग उसका तर्जुमा करते हैं

जहां गली के मुहाने पर मिलता है
सेर भर अश्लील साहित्य
जहां की आबादी
घरों से इस तरह निकलती है जैसे
चीटियों के सुरंग में किसी ने पानी झोंका हो

जहां,
उस बस्ती के बाशिंदे सर्कस में नौसिखिए सा
दो बांसों के बीच खीचीं गई रस्सियों पर
हवा में हाथ लहराए
बैलेंस बनाते हुए चलने की कोशिश कर रहा है।

अक्सर,
जिंदगी को हमने वहीं देखा है सांस लेते हुए
भारी सांसों को हंस कर कोयला ढ़ोते हुए

उम्र के इस मोड़ पर अनायास
वे सारे घोषित गुनाह मुझे प्रिय लगने लगे हैं

गर हम शिक्षिका से नहीं करते प्रेम
कैसे जानते गहनतम धरातल को
प्रेम का जटिल अध्याय
ठेके पर नहीं पीते शराब
तो रंग-बिरंगे दुखों के मेले से
कैसे होते रू-ब-रू?

नहीं पढ़ते सस्ते व अश्लील साहित्य
तो कैसे जानते उनमें छिपे रहस्य औ' गूढ़ विचार?
कैसे कर पाते व्याख्या समाज, संस्कृति, शिक्षा और आदमी से लेकर
इन्हीं की विकास यात्रा तक की?

कैसे बनता हमारा अपना नज़रिया?

मैं सही हूं या गलत
यह बहस का विषय हो सकता है

कदाचित्
यह भी संभव हो कि
हमारी लिख्खी कविताएं
अकादमी की पाठ्यक्रमों में शामिल न किए जाएं

किंतु,
तुम तो जानते हो न कवि;
कि कविताएं दूब जैसी होती है.
..कि कविताएं कहीं भी उग आती हैं

25 टिप्पणियाँ:

Ashok Kumar pandey said...

यह कविता एक अजीब सी एनार्की के मूड में लिखी गयी कविता

ओस की बूंद की तरह साफ़ और इमानदार
एक ऐसे सच को बयान करती है जो कहने के लिये बड़ी हिम्मत की ज़रूरत है।

अपूर्व said...

अच्छा है जब आप फ़टाफ़ट ऐसी खतरनाक-टाइप पोस्ट डाल देते हो...कविताई सीखने चला मेरा दिमाग अपनी औकात पे आ जाता है..अगर कहूँ कि कितनी जलन हुई तो तुम अपनी विनम्रतावश इसे मजाक समझोगे..सो वह भी नही कह सकता..मगर कविता मे बाद मे कहूँगा..पहले कुछ ठंडा पानी डाल कर आता हूँ दिल पर..:-)

Udan Tashtari said...

किंतु,
तुम तो जानते हो न कवि;
कि कविताएं दूब जैसी होती है.
..कि कविताएं कहीं भी उग आती हैं

-कैसे कैसे भाव उमड़ते गये किन्तु अंतिम चरम पर...वाकई...कविताएं कहीं भी उग आती हैं..सही ही है.

अर्कजेश said...

वाह ! यह कहना बहुत अपर्याप्‍त है । सच कहें तो विमुग्‍ध हो जाते है हर बार ...

कुश said...

कविताये लिखते हो या खौलते हुए तेल में तलते हो.. ?
पक्के कारीगर हो यार,,,!

अमिताभ मीत said...

बहुत खूब भाई. बेहतरीन रचना.

अनिल कान्त said...

इस बार तो तुमने मियाँ कहर ढा दिया...

रंजू भाटिया said...

बहुत ही ईमानदार लिखा दिया है जी आपने ...असरदार लफ्ज़ है ...जो सीधे दिल से ही प्रश्न करते हैं .यह भाग १ है .आगे क्या कहोगे उसका इन्तजार है ....

ओम आर्य said...

कवि कह गया है...

kya gajab kah gaya hai kavi...

पारुल "पुखराज" said...

कि कविताएं कहीं भी उग आती हैं --ठीक बात...यहाँ कविता सदा ऊँचे सुर में बहती है ...बेहतरीन ...

sanjay vyas said...

दग्ध कलेजे से निकली बात की तरह सच्ची,खरी.
और आखिर में किसी उम्मीद पर शेष होती.
बनाए रखना मित्र.

Manish Kumar said...

सच कहा और बड़े सलीके से कहा और अंत में ये पंक्तियाँ

किंतु,
तुम तो जानते हो न कवि;
कि कविताएं दूब जैसी होती है.
..कि कविताएं कहीं भी उग आती हैं



तो मन ही मोह गई़।

गौतम राजऋषि said...

खासम-खास "सागर-शैली"..ओहो, अद्‍भुत सागर-शैली वाली एक बेहतरीन कविता !

दिल से निकली है तारीफ़ दोस्त..

नौजवानी के इन तमाम ढ़ंके पहलुओं को जिस बेदर्दी से उधेड़ते हो तुम अपने इन विशिष्ट जुमलों से कि मन अपनी कई-कई परतों तक हुमक उठता है। हुमक उठता है कि कमबख्त हमने क्यों नहीं इस बात को लिखने की जोहमत उठायी।

मिलने का बहुत मन करने लगा है अब तो....शायद जल्द ही मौका लगे!

गौतम राजऋषि said...

"शराबी की सुक्तियां" की राह दिखाने के लिये, लो आज से तुम्हारा कर्जदार हुआ हूँ मैं। वहां जो लिखा है, उस यहां भी पेस्ट कर दे रहा हूँ:-

@सागर,
शुक्रिया शुक्रिया शुक्रिया शुक्रिया....

तुम न बताते ये राह तो इस अलौकिक "मधुशाला" से वंचित रह जाता मैं तो।

...मुझे इसकी एक प्रति कैसे मिलेगी? anything, anything for one copy.

Amrendra Nath Tripathi said...

सागर साहब !
सही है अच्छा या बुरा दृश्य
के बजाय दृष्टि में निहित ज्यादा दिखता है ..

दिगम्बर नासवा said...

किंतु,
तुम तो जानते हो न कवि;
कि कविताएं दूब जैसी होती है.
..कि कविताएं कहीं भी उग आती हैं


इतना खुल कर अपने आप को बयान कर देना ........... कोई आप से सीखे ....... पर बहुत अच्छा लगता है आपको पढ़ना .... मन करता है चीख चीख वो सब कह दूँ जो कहना चाहता हूँ .......... पर आपकी तरह साहस नही आता ....... बहुत ही बेहतरीन लिखा है आपने ........ सत्य ..........

रवि कुमार, रावतभाटा said...

एक उम्दा कविता...
ऐसा लगा शुरूआत में जिस रवानगी से उठी थी...
उत्तरार्द्ध में थोड़ा बहकी...
और अंत में फिर खड़ी हो गई...
सागरिया तेवरों के साथ...

धन्यवाद...

अपूर्व said...

उम्र के इस मोड़ पर अनायास
वे सारे घोषित गुनाह मुझे प्रिय लगने लगे हैं

क्या-क्या हकीकतबयानी कर देते हो आप..कविता के बहाने..कि आइना भी अपना मुँह छुपा ले..
और कविता के बहाने जो सार्थक बहस ब्लॉग जगत पर चल रही है उसमे आपकी यह पंक्तियाँ एक मील का पत्थर लगती हैं, जैसे कविता का सच...

तुम तो जानते हो न कवि;
कि कविताएं दूब जैसी होती है.
..कि कविताएं कहीं भी उग आती हैं

दर्पण साह said...

उम्र के इस मोड़ पर अनायास
वे सारे घोषित गुनाह मुझे प्रिय लगने लगे हैं


आपकी ये कविता ही नहीं अपितु आपका पूरे काव्य लेखन में किसी अपराधबोध का सा एहसास होता है, मनो आपने ठेका लिया हो कुछ गलत चीजों को सही ठहराने का या उनके बचे रहने का. मनो कोई स्वीकारोक्ति हो.
आपके ब्लॉग को देखता हूँ तो कोई कन्फेशन बॉक्स सा लगता है, लेकिन साथ ही उसे उचित ठहराने की जिद. शायद इसलिए ही प्रभावित करती है आपकी लेखनी.
क्यूंकि हर किये गए अपराध से अपने को relate करने की, हर विक्टिम में हर कलप्रिट में अपने को ढूँढने की कोशिश जारी है...

Sudhir (सुधीर) said...

किंतु,
तुम तो जानते हो न कवि;
कि कविताएं दूब जैसी होती है.
..कि कविताएं कहीं भी उग आती हैं

सागर जी,
आप शमा बांधते बांधते कितनी बड़ी बात कह गए. आपकी कविता पढ़कर अच्छा तो लगता ही हैं किन्तु आज तो एक सांस मैं पढ़ा और अंत मैं तो आपने गज़ब ही ढाह दिया. वाह. साधू साधू

डॉ .अनुराग said...

कदाचित्
यह भी संभव हो कि
हमारी लिख्खी कविताएं
अकादमी की पाठ्यक्रमों में शामिल न किए जाएं

किंतु,
तुम तो जानते हो न कवि;
कि कविताएं दूब जैसी होती है.
..कि कविताएं कहीं भी उग आती हैं


सच कहा .खरा सच......बाजीगिरी खेलती इस दुनिया में जब अधेड़ो को बच्चो की माफिक लार टपकाते .मिमियाते देखता हूँ .फिर आत्म मुग्ध होते ...तो ऐसी कविताएं पाठ्य कर्म में शामिल करने का जी करता है .चूंकि नैतिक शिक्षा सरीखी कविताएं वे मेज पर रखे भूल गए है ...ओर ऐसी कविताएं बिना खाद के उग जाती है ..बिना कीड़ो की परवाह किये ...

TRIPURARI said...

मतलब सोच लिया है कि जीने नहीं देंगे |
हमने भी ठान लिया है साँस की चप्पू चलाते रहेंगे
और आपके ब्ळॉग में अपनी नाव चलायेंगे...

बहुत शुक्रगुज़ार है हम आपके कि आपने इस ख़्याल को आँखों से स्पर्श करने का मौक़ा दिया .......

हरकीरत ' हीर' said...

सागर जी आपकी इस कविता पे मेरा सारा लिखा पानी भरता है .....अब जब अशोक जी ,अपूर्व जी गौतम जी और डाक्टर साहब जैसे महारथियों ने इतनी तारीफ कर दी है तो मेरा लिखा क्या मायने रखता है .....कहाँ से लाते हैं ऐसी सोच .....??

अनूप शुक्ल said...

कवि बहुत खतरनाक बातें कहता है।

Anonymous said...

बहुत सुन्दर कविता है . पर इस कविता को आज पढ़ के तुम्हें मेरा ख़याल क्यों आया ?