बोलो ना!


जल्दी जल्दी बोलो
बड़ी-बड़ी, खरी- खरी
और
छोटी-छोटी बातें

झूठ का वजूद लिए हम
निर्दयी दुनिया में
सच सुनने की कटोरी लिए घूम रहे हैं

बड़े ही व्याकुलता से देखा करते है तुमको
कि तुम हर बार नयी कुछ बात कहोगे
जो सौ बात के एक बात होगी
यह हमारे ही दिल का गुबार होगा

कुछ ऐसा कह दो जो
रोटी बेली नहीं जा रही है
पर मुझे स्वाद भूला सा लग रहा है
तालू की पिछली छोर पर बैठा वो स्वाद
लगातार उकसाता रहता है
कि कुछ बोलो
मनमाफिक

बोलो ना!

8 टिप्पणियाँ:

अनिल कान्त said...

वाह क्या खूब लिखा है

वैसे अब तक नहीं बोलीं तो इसे पढ़कर जरूर बोल देंगी जनाब :)

डिम्पल मल्होत्रा said...

झूठ का वजूद लिए हम
निर्दयी दुनिया में
सच सुनने की कटोरी लिए घूम रहे हैं...or jhutth me hi khushi pate hai....

Ambarish said...

bahut accha likha hai...

अपूर्व said...

वाह साहब! बड़ी फ़ुरसत पा रही है आपकी लेखनी आजकल लगता है ;-)
सच कहा है आपने कि झूठ के वजूद ही हैं हम जीते जागते.और उस पर सच सुनने के आकाँक्षा रखना वैसे ही है जैसे छतरी लगा कर बारिश मे भीगने की ख्वाहिश!!
और यह पंक्तियाँ तो आप हमारी तरफ़ से आपको ही कही समझ लीजिये..

बड़े ही व्याकुलता से देखा करते है तुमको
कि तुम हर बार नयी कुछ बात कहोगे
जो सौ बात के एक बात होगी
यह हमारे ही दिल का गुबार होगा

हाँ अंत मे मनमाफ़िक सुनने की बात पल्ले नही पड़ी..हम जो सुने वो सच भी हो, नया भी और मनमाफ़िक भी?..क्या दूसरो के मुंह से हम खुद को ही नही सुनना चाहते हैं?..फिर नया क्या?..खैर बस ऐंवे ही :-)

Dr. Shreesh K. Pathak said...

" तालू की पिछली छोर पर बैठा वो स्वाद लगातार उकसाता रहता है कि कुछ बोलोमनमाफिक
बोलो ना!"

वाह सागर साहब....वाह...
कुछ लोगों को पढ़ते ही कितनी ऊर्जा आ जाती है..अब जैसे अपूर्व जी को ही, पर यहाँ उन्होंने नज़र लगा दिया है...आपकी फुर्सत को...टचवुड....आप यूँ ही फुर्सत पाते रहें और लिखते रहें अनगिन लहरें....

ओम आर्य said...

कुछ ऐसा कह दो
जो निगला गया था थूक के साथ
लाचारी और बेबसी में
ताकि झनझना कर बहरे हो जाएँ उनके कान

कुछ ऐसा कहो
जो चाट जाए दीमकों को
और बच जाए तुम्हारे रीढ़ में पड़ा काठ

हाँ-हाँ जरूर कहो कुछ मनमाफिक, मुझे भी सुनना है

गौतम राजऋषि said...

"कुछ ऐसा कह दो जो
रोटी बेली नहीं जा रही है
पर मुझे स्वाद भूला सा लग रहा है
तालू की पिछली छोर पर बैठा वो स्वाद
लगातार उकसाता रहता है..."

ये नये बिम्ब हमेशा मुझे भाते हैं।

Meenu Khare said...

"कुछ ऐसा कह दो जो
रोटी बेली नहीं जा रही है
पर मुझे स्वाद भूला सा लग रहा है
तालू की पिछली छोर पर बैठा वो स्वाद
लगातार उकसाता रहता है..."

आज पहली बार आपकी रचना पढ़ी. अच्छा लगा पढ़ कर. सशक्त लेखन.