दुनिया हमारे लिए यातना गृह थी. हमें जो यहाँ कर रहे हैं वो यहाँ करना ही नहीं था. कहीं से किसी विचलन में इस अक्ष पर हम आ कर घूमने लगे. आदमी इसी विचलन की पैदाइश है. जो यहाँ आकर जितनी विचलन का शिकार होता है और यह स्थित उसे जो बनाती है उससे उसकी मनुष्यता आंकी जा रही है. हम थे तो हमें मिटाने और तोड़ने को तुम आतुर थे. अब हम नहीं हैं तो तुमने सर पीटने का एक उपक्रम ढूंढ लिया है. हमें तुम्हारे सामने कीमती नहीं समझा गया. फिर हमने बखुशी काँटों का ताज पहन लिया. अब तक दिल दुख ना था मगर अब जब तुम्हें मैं प्रतिस्पर्धी नहीं लग रहा हूँ तो तुम मुझमें खुदा खोज रहे हो. इसका मतलब अगर खुदा हमारे बीच होता तो वो खुदा नहीं होता. हम उसको भी मारने के उपाय ढूंढते और ढूँढा भी.
हम कोई किसी के दुश्मन ना थे, अपनी उधेड़बुन में तलवे घसीटते समय काटा और मरने से ठीक पहले ज्ञात हुआ कि हम कोई किसी के दुश्मन ना थे बस एक दस्तावेज़ थे जिनसे आदमीयत धनी होनी थी.
हमें पढ़ो कि हम अब तक अनपढ़े हैं.
हमें पढ़ो कि हम आर्त स्वर में तुम्हें ही प्रार्थानों में पुकारते हैं.
हमें पढ़ो कि नाराजगी के बावजूद भी उम्मीद तुम्हीं से है.
हमें पढ़ो कि इंसानियत का कोई और विकल्प नहीं है.
जब तक तुम लड़ना सीख सको
यूँ सहेजने से कुछ नहीं होना
तुम कला कि कद्रदानी नहीं बस मेजबानी कर रहे हो
जिसकी फेहरिस्त में क्या दिखना, क्या चखाना ये लिखा है.
क्या फायदा ऐसा बड़ा होने का?
भीड़ देखकर तुम माँ का आँचल छोड़ देते हो
पढो कि अभी सहर होनी बांकी है
पढ़ो कि किसी वक्त पर लायब्रेरी अटी पड़ी होने कि बावजूद
तुम्हारा धीरज और अर्जित ज्ञान चूक जाता है.
मगर अब हमें फाड़ कर फिर से पढो.
(डी. पी. एस. १:४७':५०'' )
4 टिप्पणियाँ:
काश हमें वे समझें फिर से।
क्या फायदा ऐसा बड़ा होने का?
भीड़ देखकर तुम माँ का आँचल छोड़ देते हो
.... बेहतरीन
दिल और दिमाग पर हथोडों की आवाज़ ... यह विचलन कितना विचलित कर गया ...
हम थे तो हमें मिटाने और तोड़ने को तुम आतुर थे.
खुदा हमारे बीच होता तो वो खुदा नहीं होता. हम उसको भी मारने के उपाय ढूंढते और ढूँढा भी.
इंसानियत का कोई और विकल्प नहीं है.
क्या फायदा ऐसा बड़ा होने का?भीड़ देखकर तुम माँ का आँचल छोड़ देते हो
झंझोर कर जगाने वाली प्रभावशाली पोस्ट...
:-)
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