(दोस्तों में मैं देखता कि उनके शूज़ पैरों की तब सबसे ज्यादा रक्षा कर रहे थे जब वे सबसे ज्यादा सुकुमार थे)
पुराने जूतों को पता है मेरा इतिहास
कि वे एक बड़ी उम्र तक मेरी पहुंच से बाहर रहे
जब स्वतंत्रता दिवस की परेड में एक जोड़ी जूते आदर्श शर्त थे तो
रातों-रात नहीं खरीदे गए जूते
मोची के एक टेढ़े लोहे के औजार पर कसे गए
उनकी बनावट मैंने गौर से देखी
जूते के रूप में मैं तैयार हो रहा था।
अत: जूते जब नसीब हुए तो वे मजबूरी के विकल्प थे
जूते एक बड़ी उम्र तक मजबूरी के ही विकल्प रहे
पुराने जूते को मेरी विकलांगता का अंदाज़ा है
वे जानते हैं कि मेरी टांगे किस किस कोण पर कितना झुकती है
पुराने जूते जो बिना पॉलिश इतने सख्त थे कि
मुझे समझौता करना पड़ता था
और मेरा बचपन इस समझौते की ज़द में गुज़रा
...यह भविष्य की तैयारी थी।
पुराने जूते
जिया सराय के गुमनाम बैचलर के कमरे की शोभा थे
जब दोस्त शराब पी कर ऊबकाई मारने बाथरूम भागते
तो बेसब्री में पहने जाने वाले
वफादार वेश्या थे
अब मेरे घर में पड़े हैं
हर उम्र के पुराने जूते
ऐसबेस्टस की दरार से आते रात भर बरसे पानी में
भींग कर जूता फूल गया है
वह ऐसे रूठा है मानो
घर की सबसे लाडली ने अपना मुंह फुलाकर बैठी हो
लकड़ी के तख्ते पर औंधा पड़ा धूल खा रहा वो जूता
रेलवे की परीक्षा के लिए लिए गए थे
और सफर के दौरान ही एक ठग ने उसमें सोलह कांटी मार अड़तालीस रूपए वसूले थे
तब जूतों ने बताया था कि
कुछ चीजे़ं स्तरहीन होती हैं
धोखा भूख के बराबर का जिंदा, नंगा और भूखा वही स्तरहीन आदमी है।
पुराने जूतों को पता है कि मैंने उनसे उनके पहने जाने के वक्त में कभी प्यार नहीं किया
लेकिन जब ज़माने की नई चलन नाॅस्टेलज़िया की प्रथा अपनाऊंगा तो
मैं उसे सबसे ज्यादा प्यारा लगूंगा
मेरे लिए जूता हमेशा एक कड़क शब्द रहा
जिसमें बड़ी ऊ की मात्रा उसे कर्कश बनाती रही
उच्चारण मात्र से चेतावनी, धमकी, रूखाई, अनुशासन और दण्ड के द्योतक थे।
क्षमा करें श्रीमन् वे ‘शूज़‘ नहीं थे।
पुराने जूतों को पता है कि वे मेरी अपमान के प्रतीक हैं
फिर भी मैं उसे संभाले रखने वाला हूं
अपनी सफलता के दिनों में अपना पैमाना नापने के लिए
प्रतीकों की बात न की जाए तो
पुराने जूतों को पता है हमारा निर्माण
जब तक ढ़ाई चाल चलने वाले घोड़े की तरह
कोई ऐसा विज्ञापन नहीं आता कि
'योर ओल्ड शूज इज़ अमेज़िंग, रिसायकल इट '
*****
(शीर्षक ऐसा इसलिए कि लीड खबर यहाँ है, तो न्यूज़ रूम कि तर्ज़ पर बाद में जो अपडेट/खबर जुटता जाए उसे (+add ) में दिखाते हैं. )
18 टिप्पणियाँ:
पढ़ के कई बातें सोची...लिखने तक कोई ख्याल टिका नहीं.
फिर कभी.
poem is also amazing :)keep recycling :)
पुराना जूता याद दिला दिया, बड़े नाजों से सम्हाल कर रखते थे, कहीं किसी की नज़र न लग जाये उसे।
पुराने जूतों को सब पता है... और क्या कहूँ... हाज़िरी लगा रही हूँ बस... फिलहाल और कुछ सूझ नहीं रहा कहने को... हाँ नॉस्टैल्जिया गर नये ज़माने का चलन है तो भी ये प्रथा अपनाने में कोई बुराई नहीं दिखती हमें... कम से कम यादें पहनते समय तो हम उन बीते लम्हों को प्यार करते हैं जिन्हें तब प्यार नहीं किया जब वो बीत रहे थे...
एक नजर इस शो विंडो में भी देखे किसी कारीगर ने इधर भी कुछ घडा है...
http://www.anubhuti-hindi.org/gauravgram/dhoomil/mochiram.htm
पुराने जूते वक्त की वो पह्चान हैं जिन्हे चाहे कहीं रखो अपना आभास कराते ही हैं…………जूतो के माध्यम से जीवन दर्शन करा दिया…………जूते के बिम्ब का सुन्दर उपयोग किया है।
अच्छी कविता है। ये लाइनें खासकर जमीं मुझे:
ऐसबेस्टस की दरार से आते रात भर बरसे पानी में
भींग कर जूता फूल गया है
वह ऐसे रूठा है मानो
घर की सबसे लाडली ने अपना मुंह फुलाकर बैठी हो
इस कविता को पढ़ते हुये धूमिल की कविता मोचीराम याद आ गयी-
सच कहूं बाबू जी
मेरे लिये तो
हर आदमी एक जोड़ी जूता है
जो मेरे सामने
मरम्मत के लिये खड़ा है।
इसई बहाने अपना एक लेख भी याद आ गया- जूते का चरित्र साम्यवादी होता है
ये कविता जूतों से कहीं आगे की कहानी कहती है .. बहुत से बिम्ब है सब तस्वीरों की तरह आँखों के सामने गुज़र रहे है
rochak prayog hai.. :)
aapki kalpna shakti bhi hamesha kuch nayapan lekar aati hai,is liye aapki maulikta asar karti hai!!
पुराने जूतों को पता है कि वे मेरी अपमान के प्रतीक हैं
फिर भी मैं उसे संभाले रखने वाला हूं
अपनी सफलता के दिनों में अपना पैमाना नापने के लिए
प्रतीकों की बात न की जाए तो
पुराने जूतों को पता है हमारा निर्माण
जब तक ढ़ाई चाल चलने वाले घोड़े की तरह
कोई ऐसा विज्ञापन नहीं आता कि
'योर ओल्ड शूज इज़ अमेज़िंग, रिसायकल इट '
...
पुराने जूतों में और क्या क्या बचा के रखा hai..??
कई घुमाव शानदार....
Apoorv...
Sagar....
.........
सागर भाई जो पहले से ही घायल हो उसपर तीर नहीं चलाते.
वो भी उसी रफ़्तार से...
कोई मेरे दिल से पूछे, तेरे तीर-ए-ज़ोर कश को,
है शुक्र की अब तक जिन्दा हूँ !
बहरहाल...
जिया सराय के गुमनाम बैचलर के कमरे की शोभा थे
जब दोस्त शराब पी कर ऊबकाई मारने बाथरूम भागते
तो बेसब्री में पहने जाने वाले
वफादार वेश्या थे
बधाई तो बनती ही बनती है भाई ! :)
wahi dard jo humare umra me sabko sata raha hai...nice poem :)
yaar aajkal jootampaijaar ka season hai kya??? wahan Apoorv, yahan tum.. :)
जूते के बिम्ब का सुन्दर उपयोग किया है। धन्यवाद|
आप को बसंत पंचमी की शुभकामनाएँ|
कमाल का लिखते हो मियाँ.......
हम तो आपके मुरीद हो गये और तफसील से आपसे तब्सरा करने की ख्वाहिश रखतें है....एक मुज़रा आपके साथ जरुर देखा जायेगा ये वादा रहा..।
हो सके तो चलदूरवाणी का क्रमांक बताने की कृपा करें ताकि ओल्ड मांक का अध्धा चढा कर किसी दिन आपसे गुफ्तगु के काबिल बन सकूँ।
बधाई,आभार
डा.अजीत
www.shesh-fir.blogspot.com
www.meajeet.blogspot.com
dr.ajeet82@gmail.com
dost apki rachna par comment nahi karunga. kyuki khud ko comment karne main aksham pa raha hu. lekin ha apka parichiya parha sach main maza aa gaya aisa parichya maine aaj tak nahi parha.
जूते का सहारा ले कर बहुत कुछ कह देने का खुबसूरत अंदाज अच्छा लगा |
सुन्दर रचना बहुत बहुत बधाई |
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