
ये ताजी हवा,
यह प्रकृति के विविध रंग,
तितलियों का रसास्वादन करते पंख खोलना और बंद करना
रख लो आँखों में
कमजोर लताओं का आत्मविश्वास से खड़े होना.
उन दिनों के लिए
जब अवसाद घेरे और
मन का अँधेरा करवटें लेने लगे
रोक लो इन हवाओं को
कश बना कर,
दो पल;
उलझी हुई आँत के गलियों में
सिगरेट के धुंए के जैसे
क्योंकि,
बांकी है अभी
जेठ की दुपहरी में
दिन-दहाड़े शहर में खो जाने का डर
औ’
आधी रात में छत से शहंशाह होने का गुमान
बांकी है अभी,
बरसाती पानी से भरा विषैला
भादों का कुआँ बनना ,
लबालब भरते अंगने से
बरामदे में
सांप और बिच्छूओं का चढ़ना...
अंततः,
पूष की रात में
प्लेटफार्म पर ‘छीने गए’ चंद झपकियों में
प्रकृति की विविधता,
‘स्कूली दिनों की देशभक्ति’
और चंद गुलाबी दुपट्टों की
सारगर्भित गर्माहट
यह वसंत है तुम्हारे जीवन का खिलौना,
तुम्हारी प्रेयसी का चुम्बन
यह वसंत है स्तुति-गान
यह वसंत है तुम्हारे महासमर का बिगुल.