इल्तज़ा


तुम्हें याद है
अपना बचपन ?
जब शाम को लुक्का-छिप्पी खेलते थे हम
तुम आने की कह कर जाती
मैं इंतज़ार करता रह जाता
सबकी नज़रों से ओझल हो जाता

तुम्हें याद है ?
तुम्हारी स्टचाइयू कहने पर
मैं रुक जाता
वोहीं का वोहीं- वैसे का वैसा
फिर तुम्हारे लम्स से ही शुरू होता- नया दिन

तुम्हें याद है?
तुम्हारे कहने पर भी मैंने
नहीं लिया था
तुम्हारे होंठों का चुम्बन
यह कह कर कि
अभी इसमें वो सुर्खी नहीं आई है

अब जबकि
खेल खत्म हो चुका है
तुम्हारा मुझ पर कोई वश भी नहीं है
औ' तुम्हारे होंठों पर सुर्खी भी आ गयी है

क्या नहीं शुरू हो सकता कोई नया दिन???

14 टिप्पणियाँ:

ओम आर्य said...

गज़ब की अभिव्यक्ति है बन्धू ................................................................................................................................

Arshia Ali said...

सुंदर विचार।
{ Treasurer-S, T }

केतन said...

sagar sahab.. zara sambhal ke.. :)

रवि कुमार, रावतभाटा said...

बहुत ही नाज़ुक कविता...
अपनी ही एक कविता की पंक्तियां याद आ गई..

‘हम उस पल का जश्न मनाएंगे
जब पहली बार तुम्हारे गालों पर सुर्ख़ी छाई थी
और तुम गुलाब सी महक उठी थी’

सुर्खी छा गई..गालों पर ही सही..होठों पर ही सही..

गौतम राजऋषि said...

यकीन करोगे आप सागर साब...आखिरी तीन पंक्तियों ने एक अजीब सी सिहरन पैदा कर दी पूरे वजूद में। एक पल को एकदम से थरथरा उठा मैं.....शब्दों का जादू है या कविता की सच्चाई कि अहसास लैपटाप के स्क्रीन से निकल कर भिगो गया मुझे।

आज दिन में एक अद्‍भुत प्रेम-कविता पढ़ी मैंने चिट्ठा-चर्चा पर, एक परस्तिश पर रूपम जी की और फिर अब ये ’इल्तजा’...

ईश्वर करे, आपकी लेखनी यूं ही फुरसत पाती रहे और हम पोस्ट-दर-पोस्ट यूँ ही सिहरते रहें...!

Sanjay Grover said...

अब जबकि
खेल खत्म हो चुका है
तुम्हारा मुझ पर कोई वश भी नहीं है
औ' तुम्हारे होंठों पर सुर्खी भी आ गयी है


क्या नहीं शुरू हो सकता कोई नया दिन???


uf ye kaisi kasak kaisi khalish chherh di aapne !

शरद कोकास said...

बढ़िया प्रेम कविता है

कुश said...

उम्दा लिखावट.. वैसे ये इल्तजा किस से हो रही है ?

daanish said...

mn ki baat....
aur iss sehajataa se chnd alfaaz mein uskaa izhaar !!
waah !!
---MUFLIS---

Satya Vyas said...

bahut sundar abhivyakti . bhawnao ko sabdo ka bejod aashray.

तुम्हें याद है?तुम्हारे कहने पर भी मैंनेनहीं लिया था मैंने तुम्हारे होंठों का चुम्बन.

yahan do baar maine ka prayog thoda sa bahut thada sa khatakta . hai .per ise anyatha na lijiyega.

baki .. bejod.
satya

Satya Vyas said...

sagar aap delhi me kahan hai.

गौरव कुमार *विंकल* said...

क्या नहीं शुरू हो सकता कोई नया दिन???
khoob likha ...pehli baar pada hai aapki rachnaon ko ,achhi lagi...

दर्पण साह said...

तुम्हारा मुझ पर कोई वश भी नहीं है
औ' तुम्हारे होंठों पर सुर्खी भी आ गयी है


wo shit !! Missed it !!! Wali koft...

...humein bhi hai !! 12 saal ho gaye chahe !!

अनिल कान्त said...

तुम कविता को बहुत सही से ट्रीट करते हो