रूपहला पर्दा खीचा तो
दिखने लगे मजलूम और मरहूम लोग,
बेतरतीब से भागती दुनिया, खून बेचते लोग,
रिक्शे चलाते बूढे... बचपन बेचते बच्चे
बेटी के ब्याह वास्ते पैसे जमा करता पिता औ'
चुभती धूप में फाइलें लिए दफ्तर-दफ्तर भटकता युवा
कागज़ें प्रेम पत्र के आवेदन पत्रों में बदल गए
स्याही करने लगे प्लेटफोर्म पर से
माँ को अपने भूखे दिन का सीधा प्रसारण औ'
पिता को 'ताजा संघर्ष' की कहानी,
बहनों को हँसते रहने की हिदायतें...
तुमसे छूटा तो दुनिया बड़ी दिखने लगी
महसूस होने लगा
सरहद पर खड़े होकर कैसे लड़ रहा रहा है सालों से फ़लीस्तीन,
क्या हुए वियतनामी ?
समझ में आने लगी
सफल चेहरों की पेचेदगियाँ
दिनचर्या सिमट कर कमरा जरूर हुआ
पर सब्ज़बाग़ हटाये तुमने तो
मासूमियत जाती रही,
मुहब्बत का बूँद फूट कर दुनिया भर में फैल गया
औ' रु-ब-रु हो रहा हूँ तमाम गैर-इंसानी कारोबारों से.
3 टिप्पणियाँ:
दिनचर्या सिमट कर कमरा जरूर हुआ
पर सब्ज़बाग़ हटाये तुमने तो
मासूमियत जाती रही,
मुहब्बत का बूँद फूट कर दुनिया भर में फैल गया
औ' रु-ब-रु हो रहा हूँ तमाम गैर-इंसानी कारोबारों से
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एक और कत्ल !!!
आँखों पर से तुमने
रूपहला पर्दा खीचा तो
SATY AUR SAARTHAK RACHNA ........ AANKHO SE PARDA HATA KAR DEKHA SATY KITNA KADUAA HOTA AI ... BAHOOT HI SAMVEDANSHEEL LIKHA HAI...
कागज़ें प्रेम पत्र के आवेदन पत्रों में बदल गए
bahut khoobsurat soch
main kasmasa gaya...........
yakin karen shabd nahi hain mere pas.
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