कविता आना चाहती है
कविता आना चाहती है...
एक विशाल भू भाग से उठ कर, सघन क्षेत्र में
यह विविध रंगों का मिश्रण हो एकाकार होना चाहती है.
सातो रंग मिलकर श्वेत होना चाहती है.
ऐसा नहीं है कि कविता लिखी नहीं जा रही इन दिनों
कविता आ रही है
जिसके आगमन का वेग तीव्र है
मगर इस थपेड़े में हम स्वयं गुमशुदा की तलाश में हैं
कविता इन दिनों
कई शक्लों में आ रही है
इनमें कविताओं ज्यादा कवियों का अपना बनाव श्रृंगार है.
कविता आ रही है
मगर इसकी गति हमें कहीं पहुंचा नहीं रही
इन दिनों कविता मेट्रो रूट की ट्रेन पकड़ने जैसी है
जहां हर स्टेशन यात्रा की शुरूआत है.
आप किसी भी पंक्ति से शुरू कर सकते हैं
आप कहीं भी खत्म हो सकते हैं
(फिर चाहे मैं भी क्यों न होऊं)
कविताएं आ रही है इन दिनों भी,
लेकिन शिल्प कुछ यूं है कि किसी महाकवि ने प्रणेता बन
महाकविता लिखी और
अंतिम पंक्ति में एक कोष्ठक डाल (....) उसे रिक्त छोड़ दिया
महज युवा कवियों से ही नहीं भाषा के जानकारों से उम्मीद की गई थी कि
कविता अपने शिल्पों में समृद्ध होगी।
महाशय,
नहीं मंतव्य था उसका और
ना ही कहा था कहा भी था तो इस संदर्भ में नहीं कि
रिक्त स्थानों की पूर्ति करो.
मगर आज कविता उसी रिक्त स्थान की पूर्ति करता ज्ञात होता है.
मित्रों 'अ' पर हाथ घुमाते घुमाते अब यह वर्ण मोटा हो चला है.