पछतावे की आंच

यह पछतावे की आंच है 
दूसरों को 
अपनी जीवन निर्धारण का फैसला सौंपने का

सामाजिक समानता का सपना रख लड़ते लड़ते 
मुझे एहसास हो गया है कि धरती पर जब तक जीवन है 
अन्याय होता रहेगा
बस अब लड़ने की भावना बनाये रखने की बात है 
क्योंकि इधर से साथी कम हो रहे हैं.

यह पछतावे की आंच है जिसमें 
झुलसकर महसूस हो रहा है कि हमने हौसले बढाने वाले वाले गीत नहीं लिखे
हमने मौके मुताबिक बात की, यह गलती की

पछतावा इसका है 
कि हमारी लड़ाई में ठहराव आ गया था.
कि हमें सरपट दौड़ते घोड़ों से गिरते हुए भी उसके गर्दन के बाल पकड़ लेने थे 
कि हमें अपने सबसे प्यारे तोते का कलेजे पर पत्थर रख कर गर्दन मरोड़ देना था.
किताबें जला देनी थी 
मगर हम अच्छा पढने में रह गए. 

यह पछतावे की आंच है 
दोस्त के बहकावे में आकर 
किया गया पहला हस्तमैथुन सा पछतावा
मुसलामानों की बस्ती में अपना झोपडी ना पहचान पाने का पछतावा
हमें लोगों से बहुत उम्मीद थी 
और इस आस में समय रहते 
हमने विरोध नहीं दर्ज कराया.
यह पछतावा है.

वहीँ, दूसरी तरह के लोगों ने 
रात भर रिमांड पर रखने के बावजूद 
अपने फाइल से मेरी गुमशुदगी की रिपोर्ट नहीं हटाई है.
और अब मिलते हर यातना पर पछतावा है.

यह शर्मनाक है कि सारी हदें हमने सिर्फ लिखने में तोड़ी.

इतवार

तुम्हारा चेहरा अधूरा पड़ा है कई दिनों से 
कल पूरा कर दूंगा
किताब में कुछ पन्नो के बाद अटकी डंठल लगी गुलाब भी कुछ पन्ने बढ़ कर ठहरेगी
महकाएगी उन नज्मों को 
जो बिना पढ़े बासी लगते हैं 
बोलकर पढो तो रूह जागती है. 
किनारे से एक टुकड़ा फाड़ कर चख भी लूँगा 
कागज़ घुलता है जुबान पर तो 
कारखाने की चिमनी में कोई लोहा पिघलता है.
अपना दर्द गलता है.

कच्ची घानी सरसों का तेल भी ठोंक दूंगा छुटकी 
तुम्हारे माथे में
शांत मन से ज़ार-ज़ार रो लेना तुम
कोई इमोशनल सिनेमा देखते हुए

एक अंतर्देशी भी लिखना है, घर पर
जिसको लिखने में पहले बाधा नहीं आती थी , बेलाग लिखते थे, 
मगर अब माथे पर बल पड़ते हैं 
कलम कुंठित हो जाती है 
और 
बहुत सारा जगह छूट जाता है.
(प्रेम पत्र के लिए पूरी कोपी भी कम पड़ रही है)

पनीर की सब्जी बनाते हैं कल जानां
और आज देर तक जगकर तारे गिनते हैं.
कल जब आधे दिन पर पहले चौंक कर फिर
फिर "थैंक गोड, इट्स संडे" कहोगी तो
मैं कुरते में अंगराई तोड़ते तुम्हारे हुस्न की तारीफ कर वापस खिंच लूँगा.

हम थोक में तो पैदा नहीं हुए थे ना, मेरे बाप !

तुम्हें मौका नहीं मिला वर्ना तुम भी रिश्वत खाते
बोबी में डिम्पल कपाडिया को देख तुमने भी आहें भरी थी.
एक विशेष कोर्ट का सम्मन झेला था
और साठ रुपये घर भेजते थे.
सूचना क्रांति ने एहसास में कोई इजाफा नहीं किया है
(हमपर बीते सारे हालात एक जैसे हैं)

तुम्हें प्यार नहीं मिला इसलिए
तुमने सबको अपने आकाश में समेटने की कोशिश की 
तुम बांह कसते गए और लोग छूटते गए
मानता हूँ, तुम्हारी उँगलियों में ग्रीस नहीं था 
चिकनाई  उनपर ही जमी थी 
(अभाव में पला बेटा कहता है)

तुम पचास पार ढल रहे हो 
और मैं पच्चीस में लबालब हूँ
तुम्हें गिल्ट है नौकरी चले जाने का
मुझे धौंस तुम्हारी देखभाल का 
(अब नौकरीशुदा बेटा दहाड़ता है)

तुम मेरे पेशे से सम्बंधित कोई खबर नहीं हो 
जिसे मैं बार-बार रीवाइज़ करूँगा
सीधी सी बात है; शौकिया तौर पर  मैं 
आम आदमी पर कुछ  कवितायें लिखना चाहता था 
भावुकता और महानता बघारने से बचते हुए
जो आवारगी करते करते पिता होने को अभिशप्त हो जाते हैं.
(हाह ! अकेलापन छुपाने के लिए आदमी क्या नहीं करता है)

हम कितने सुरक्षित थे अपने गोदाम में 
पर तुमने मुझे वहां से निकाल कर 
हाई वे पर चलने वाले ट्रक पर चढ़ा दिया
(जिन पर गुड्स कैरियर लिखा होता है)

हम थोक में तो पैदा नहीं हुए थे ना, मेरे बाप !!! 
(अंतिम चारों लाइन ईश्वर के लिए )