डर
इक रोमांच बन कर आता तो बेहतर था,
अनिष्ट कुछ भी नहीं होगा यह जानते हुए कुछ सीखने को मिलता
चुनौती
और लेने की हिम्मत बनती
कलेजा शेर सा होता
कि दुश्मनों के गढ़ में जाकर उसके सीने पर दिन दहाड़े ईंट ठोक आता
जैसे मुझे अपने मरने से डर नहीं लगता
ना ही मौत किनारे घूम कर आने से
लेकिन- लेकिन- लेकिन
दाँव जब रिश्तों पर लग जाए.
नन्हे नीले फूल जब उगने से मना कर दे,
जब अन्टार्क्टिका में पेंग्विन की नस्ल पर खतरा मंडराने लगे
और जब एहसास हो जाए कि घड़ियाँ,
हर गिनती पर आखिरी बार घूम रही है
और उसकी धमक डायल की सतह के बजाय हमारे ज़ख्मों को उधेड़ने लगे
तो ऐसा नहीं होना चाहिए था.
बहुत कुछ नहीं होना चाहिए था
उसमें हमारी जुदाई से लेकर
मेरी असमय मृत्यु तक शामिल कि जा सकती है
अन्याय से लेकर यातना के आक्रांत तक उस घेरे में आते हैं.
डर का रूप धरे काल मगर
सूनामी कि तरह आता है
और हम,
जब भी बोरे बिछाकर बाग़ में जब भी आशा भरी कविता लिखने बैठे हैं
कागजों पर निराशा कि स्याही रेंग जाती है.
15 टिप्पणियाँ:
डर न जाने किस रूप में व्यक्त हो जाता है।
तुम्हारी लिखी किसी पोस्ट में हार्ट लाइन सा कुछ पढ़ा था...कल पहली बार एक्सीडेंट हुआ...डर जैसा कुछ जाना, कि अचानक से मर भी सकती थी.
ये वाली कविता फिर से मेरे कुछ सबसे पसंदीदा कविताओं में से एक होने वाली है.
सलाम सागर साहब!
हमेशा की तरह खूबसूरत कविता...
(मुझे डर तो अब लगता है... बहुत दिनों से आपसे बात नहीं हुई... मैंने एक दफ़ा आपसे कविता सुनाने की ख़्वाहिश ज़ाहिर की थी... लगता है आप दर गए... हा... हा...हा...हा...जल्द सम्पर्क कीजिएगा... आपका फ़ोन नहीं लग रहा)
बेहतरीन अभिव्यक्ति...
बहुत कुछ नहीं होना चाहिए था
उसमें हमारी जुदाई से लेकर
मेरी असमय मृत्यु तक शामिल कि जा सकती है
अन्याय से लेकर यातना के आक्रांत तक उस घेरे में आते हैं.
यही सच है ...बहुत सुंदर भाव ..सोचने पर मजबूर करती कविता ....आपका आभार
डर बेहद अजीब होते हैं ...
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (28-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
जब भी बोरे बिछाकर बाग़ में जब भी आशा भरी कविता लिखने बैठे हैं
कागजों पर निराशा की स्याही रेंग जाती है..
.
डर इक रोमांच बन कर आता तो बेहतर था....
Fear is thrilling quite often .
.
Sometimes, when
Life seems so unfair
when those we love
must suffer & when
blue skies seem
far away....
I wish I could make things better...
@ Pankaj...Sagar ko angreji mein Comment ....Ye badi Nainsaafi hain
I wish I could make things better at my level.
Galtiyan dohrana bhi romanchak hota hai
डर सच ही रोमांचक होता है ...अच्छी प्रस्तुति
निराशा की स्याही का रंग इतना गहरा.. और स्याही में डर को निर्वस्त्र करने का साहस!
जब भी बोरे बिछाकर बाग़ में जब भी आशा भरी कविता लिखने बैठे हैं
कागजों पर निराशा कि स्याही रेंग जाती है.
:):):)
sadar....
Post a Comment