भोर का गीला बादल जैसे गीली मिटटी पर पर खड़ा गाँव का घर
वो कहीं फैला हल्का पारदर्शी गुलाबी टुकड़ा जैसे कड़क कर रस्सी से गिर परा कोई गुलाबी दुपट्टा
कहीं एक थक्का रूई रखा हुआ जैसे रात के आँगन में चौकड़ी भरते एक पंख छूटा हंस का
दो तिहाई स्लेटी आकाश
एक तिहाई गदलाया आसमान जैसे बरसाती गंगा
सतह से ऊपर रखा कोई अदृश्य हीरा
अब प्रकाश छान रहा है, छू रही हैं अदृश्य किरणें अब सबकी मुंडेर को
बिना पलस्तर दीवार रात भर ऊँघता, गुटर गूं करता
अपनी बुजुर्गियत झाड़ता, गला साफ़ करता बूढा कबूतर
दो रंग घुलेंगे आपस में अभी तो
कोलर चढ़ा कर एक बच्चा लाल गेंद लिए निकलेगा
प्रेशर कूकर के रबड़ जितनी परिधि में दिन भर आइना चमकाता फिरेगा
एक झुण्ड निकला है पश्चिम से अभी
इतने नन्हे कि जैसे किसी ने अभ्रक के बुरादे उडाये हों
मैं आसमान की नदी में एक बाल्टी डूबा कर
सबकी पत्तल में एक एक कलछुल गीला बादल परोसता हूँ.
किसी प्रवासी पंछी के सफ़ेद फ़र को थोडा सा रंगता हूँ.
एक आदमी का, आदमी के बिना किसी सुबह को देखना अच्छा है.
वो कहीं फैला हल्का पारदर्शी गुलाबी टुकड़ा जैसे कड़क कर रस्सी से गिर परा कोई गुलाबी दुपट्टा
कहीं एक थक्का रूई रखा हुआ जैसे रात के आँगन में चौकड़ी भरते एक पंख छूटा हंस का
दो तिहाई स्लेटी आकाश
एक तिहाई गदलाया आसमान जैसे बरसाती गंगा
सतह से ऊपर रखा कोई अदृश्य हीरा
अब प्रकाश छान रहा है, छू रही हैं अदृश्य किरणें अब सबकी मुंडेर को
बिना पलस्तर दीवार रात भर ऊँघता, गुटर गूं करता
अपनी बुजुर्गियत झाड़ता, गला साफ़ करता बूढा कबूतर
दो रंग घुलेंगे आपस में अभी तो
कोलर चढ़ा कर एक बच्चा लाल गेंद लिए निकलेगा
प्रेशर कूकर के रबड़ जितनी परिधि में दिन भर आइना चमकाता फिरेगा
एक झुण्ड निकला है पश्चिम से अभी
इतने नन्हे कि जैसे किसी ने अभ्रक के बुरादे उडाये हों
मैं आसमान की नदी में एक बाल्टी डूबा कर
सबकी पत्तल में एक एक कलछुल गीला बादल परोसता हूँ.
किसी प्रवासी पंछी के सफ़ेद फ़र को थोडा सा रंगता हूँ.
एक आदमी का, आदमी के बिना किसी सुबह को देखना अच्छा है.