राह पर गिराए
तुम्हारी चूड़ी लिए बैठा हूँ
औ' यह चुभती है
इस तरह कि
जैसे आवारा की आँखों में
विकसित होता कमसिन वक्ष
घुंघराले मटमैले बालों से झाड़ो जो धूल
तो ज़र्रे-ज़र्रे पर बिखरा अभ्रक
ना नसीब हुई जिंदगी में ले जाते हैं...
जंग जारी है
चुनौती देती उदंडता
वैचारिक धरातल पर परिपक्व बुत के बीच,
जब स्थिर मन से निकल बचपना
गाँठ बांधती है अल्हड़ता से
इस निकटता में भी इक लडाई तारी है...
...जंग महज़ सही - गलत का नहीं होता
कुछ गैर जरुरी चीजें जिंदगी के साथ
जरुरी हो जाती है लोलिता
यह आदमी नाम का सरांध संबोधन
जो दूर नाले से बहता हुआ आ रहा है
इसे बचाने की जिम्मेदारी तुम्हारी रही है लोलिता
ओ लोलिता...!!!