ख़ुद से बातें;
दिल बहुत ग़मज़दा रहता है,
ख़ुद से बड़ा खफा रहता है।
बाशिंदे तो कब के दहलीज़ लाँघ चुके,
फिर, उखड़ी चौखटों पर क्यों चिराग जलता है।
झुर्रियों वाले चेहरों की बात जो ना मानी मैंने,
रूह जिस्म से खफा रहता है।
आग का डर था या आग मेरे अन्दर था,
सहमता सा पॉव लिए दीवाना घूमता है
जीने की गुनाह की है जब से 'सागर',
जेहन हर वक्त कलम को ढूंढ़ता है।
--- सागर