बारिश एक दुःख है


दो मकानों के बीच कोई हथकरघा रखा है
आसमान से उजले तागों के लच्छे गिरते हैं।
दीवार के कंधों पर बूंद गिरकर फूट जाती है

बारिश एक दुःख है
आलते का पौधा इसे नहीं समझता
घर में हुए अकाल मौत पर भी
बच्चे सा खिलखिलता रहता है
व्यस्क हो रहा तना
जीवन के दूसरे मायने भी समझता है
उम्रदराज कदम्ब से दर्द टपकता है।
लैम्पपोस्ट से अवसाद रिसता है।

सूखा ज़मीन जीवन सा है
जम रहा है चहबच्चों में पानी
दरकने लगता है कभी ठोस मानस पटल किसी के लिए
बारिश मनरंजन करती है।

अवरोधक के कारण हम जान पाते हैं बारिश का स्वर
वरना तो ये बेआवाज़ रोती है
इश्किया कविता में झंकार है बारिश
दर्द भरी कविता में अलंकार है