सिर्फ मंजिलें ही क्यों लिखो
पड़ाव भी लिखो
लिखो कि यह इक आत्मविश्लेषण करने जैसा है.
सिर्फ सुस्वादु भोजन मत लिखो
अपमान लिखो, अंतराल लिखो
हिचकियाँ लिखो
लिखो चढ़ाई के बारे में ही नहीं
लिखो सिर्फ पेड़ पर टंगे पत्तों पर नहीं
सांस लेते मनुष्यों पर लिखो
कार्बन छोड़ते चिमनियों पर लिखो
लिखो, कविता लिखो
लिखो जो मैं अपनी कविताओं में समेट नहीं पा रहा
लिखो, जो छूट गया, लिखो जिसपर कितनी बार लिखा जा चुका हो
बढ़ी हुई जनसँख्या चिंतनीय तो है
अब कोशिश हो कि हमारे पास इतने विचार भी हों
भैसों कि तरह हांके मत जाओ
और चरवाहे कि तरह किसी को हांकने मत दो
आलिंगन में कसमसाता स्नेह लिखो
विछोह में बौराता प्रलाप लिखो
प्रतीक्षा कि हलचल में अधैर्य का योग लिखो
जश्न लिखो, शोक भी लिखो
इमारत लिखो तो लिखो
मखमली पत्तों पर अनलिखा नाम भी लिखो
प्राप्ति लिखो, त्याग लिखो
बहाव से लेकर जलप्रपात तक लिखो
रेगिस्तान में तलवों से धुल उड़ाने से लेकर जलजमाव तक लिखो
अच्छा लिखो, बुरा लिखो
कि 'बुरा लिखने से अच्छा लिखने' तक लिखो
भोग लिखो, रोग लिखो,
डू एंड डोंट्स लिखो
मौन, यातना, जेल, जन्म-मरण और पहाड़ के प़र लिखो
वो लिखो जो हम नहीं जानते
वो लिखो जो जानते हैं मगर वैसे नहीं
लिखो
निरक्षर को साक्षर बनाने की दास्ताँ
मजलूमों को हक़ दिलाने का सफ़र,
दो रोटी के बाद का अधिकार लिखो
लिखो
समय को जागने के लिए
समय पर जागने ले लिए
अपने होने के साक्ष्य के लिए
अपनी बेहतर नज़र के लिए
फिर बेहतर होते दुनिया के लिए
लिखो
यह अपने लिए लिख कर भी तुम्हारे लिए नहीं होगा.