वाहियात ख्याल


उसके काबिलियत का कोई सानी नहीं है
यह दीगर है कि आँख में पानी नहीं है

माली हालत देख कर अबके वो घर से भागी
यह कहना गलत है कि उसकी बेटी सयानी नहीं है

कितने पैकर कैद हैं आँखों में तुम्हरे हुस्न के
मुद्दा ये कोई जिक्र-ए- बयानी नहीं है

इन्कलाब करना सबकी फितरत नहीं
ये वो शै है जो खानदानी नहीं है

सुना है पैर पसारने लगा है भाई अपना
वतन के निज़ामों में मगर परेशानी नहीं है!

हर आशिक 'कूल', हसीनाएं 'हॉट' हैं
नज़र में अब कोई मीरा दीवानी नहीं है

चाँद पर सूत काटती रहती है वो बुढिया
नयी नस्लों में ये भोली कहानी नहीं है

तमाम उम्र इसी अफसुर्दगी में जिया 'सागर'
मेरे ज़िन्दगी का अरसे से कोई मानी नहीं है...

मिसरा उला लिए बैठा हूँ जाने कब से
जिंदगी का कोई मिसरा सानी नहीं है.

17 टिप्पणियाँ:

Satya Vyas said...

कितने पैकर कैद हैं आँखों में तुम्हरे हुस्न के
मुद्दा ये कोई जिक्र-ए- बयानी नहीं है

umda.......... bila shaq.
satya vyas

ओम आर्य said...
This comment has been removed by the author.
ओम आर्य said...

गरज बरस प्यासी धरती पर, फिर पानी दे मौला
चिडियों को दाने, बच्चों को गुड-धानी दे मौला

फिर रौशन कर जहर का प्याला, चमका नयी सलीबें..
फिर मंदिर को कोई मीरा दीवानी दे मौला


मैं इस आस में साहिल पे घंटो बैठा रहता हूँ
की saagar की lahren aa के chhuengi jaroor

और we chhooti है...और sihran paida कर deti हैं...

डॉ .अनुराग said...

इन्कलाब करना सबकी फितरत नहीं
ये वो शै है जो खानदानी नहीं है
किबला .कैसे कह रहे हो ये बात .....मुलायम ....से लेकर राज ठाकरे ..जसवंत सिंह .अपनी राष्टपति भी .सबकी औलादे इन्कलाब के रस्ते चल पड़ी है ....ये ओर बात है की इन्कलाब आयेगा या नहीं

Dr. Shreesh K. Pathak said...

उम्दा, भाई उम्दा, बिलकुल उम्दा....

Puja Upadhyay said...

हर आशिक 'कूल', हसीनाएं 'हॉट' हैं
नज़र में अब कोई मीरा दीवानी नहीं है

ऐसा सीधा सदा सच, वो भी शेर में...भाई लाजवाब. क्या मायने उभरते हैं शेरों में, बहुत खूबसूरत.

डिम्पल मल्होत्रा said...

माली हालत देख कर अबके वो घर से भागी
यह कहना गलत है कि उसकी बेटी सयानी नहीं है...sach hi baat se baat nikli or door tak chali gyee...

नीरज गोस्वामी said...

sagar जी behtariin ग़ज़ल कही है आपने...मेरी badhaaii swiikaar करें...हर शेर अच्छा है लेकिन खानदानी वाला के तो क्या कहने...वाह...
नीरज

ओम आर्य said...

बढ़ा दो अपनी लौ
कि पकड़ लूँ उसे मैं अपनी लौ से,

इससे पहले कि फकफका कर
बुझ जाए ये रिश्ता
आओ मिल के फ़िर से मना लें दिवाली !
दीपावली की हार्दिक शुभकामना के साथ
ओम आर्य

दर्पण साह said...

Sagar ji Namaskaar,
Shukriya karta hoon Aproov ji ka jinse mujhe aapke blog ke baare main jaankari mili.
हर आशिक 'कूल', हसीनाएं 'हॉट' हैं
नज़र में अब कोई मीरा दीवानी नहीं है.

aur
हइन्कलाब करना सबकी फितरत नहीं
ये वो शै है जो खानदानी नहीं है...
to jaan lene wale sher hain...
..Wakai main sochta hoon agar ye 'Behuda' hain to 'Umda' Kya honge?

Diwali, Dhanteras Evm Bhaiyya dooj ki hardik shubh kamnaaiyen.

दर्पण साह said...

Aapki kavita 'Mantak' ne bhi prabhavit kiya...

Wo gulal ka geet yaad ho aaiya...

"Jis kavi ki kalpana main prem geet ho likha us kavi ko aaj tum nakar do'

:)

Vinashaay sharma said...

बहुत उम्दा,हर आशिक कूल हसिना होट
नजर में मेरी कोइ दिवानी नहीं ।

दिगम्बर नासवा said...

इन्कलाब करना सबकी फितरत नहीं
ये वो शै है जो खानदानी नहीं है .......

BAHOOT KAMAAL KA SHER JAI JANAAB ... BEHATREEN GAZAL HAI ... AAJ KE HAALAAT PAR SATEEK UTARTI HAI .....

Udan Tashtari said...

चाँद पर सूत काटती रहती है वो बुढिया
नयी नस्लों में ये भोली कहानी नहीं है

-वाह वाह!!कितना सच कह गये...बहुत खूब!!

rashmi ravija said...

इन्कलाब करना सबकी फितरत नहीं
ये वो शै है जो खानदानी नहीं है
बहुत खूब.......इंक़लाब ही तो है जो खानदानी नहीं है....पर कहाँ गुम हैं, वे इंक़लाब करने वाले...

अपूर्व said...

माली हालत देख कर अबके वो घर से भागी
यह कहना गलत है कि उसकी बेटी सयानी नहीं है

अपने आलोक धन्वा साहब ने कई फ़्लैश लिये थे लड़कियों के भागने के ’बिहाइंड द सी्न‘ के..मगर यह खास ऐंगल आपके कलम से दिखा..

चाँद पर सूत काटती रहती है वो बुढिया
नयी नस्लों में ये भोली कहानी नहीं है

यह भोली कहानियाँ यदा-कदा बस आप जैसों की कविता-रचनाओं मे झलक जाती है..मगर पता नही आज-कल के बच्चे पढ़ते/सुनते हैं क्या इसे!!
बेहतरीन जा रहे हो आप..इन-फ़ॉर्म बैटिंग!!

अपूर्व said...

और इस इंकलाब की फ़ितरत वाली बात पर मैने भी कुछ लिख्नने की हिमाक़त कर दी थी..शेयर करूंगा..अगर हिम्मत मिली तो..