तकिया-कलाम


नज़्म-नज़्म लाल लिख
दिन,महीने, साल लिख

लहराते झंडों के साए में
जवां वीरों के भाल लिख

महज़ खोखले उड़ान न भर
ज़र्रा-जर्रा कमाल लिख

खबरें न सुना दुनिया भर की
पात-पात, हाल-ए-डाल लिख

ईश्क है, परवान चढ़ने से पहले
पड़ोसियों की चाल लिख

सबके ऊपर उसका ही सरमाया है
जो बोले सो निहाल लिख

बड़ा शातिर है रकीब अपना
बधाईयों की चाल लिख

पूरब से आया नहीं कोई झोंका
इस बरस तो अपना हाल लिख

दायरा कलम का बढ़ा अपनी
चापलूसी छोड़ए नमकहलाल लिख

एक्स-रे करना बंद कर `सागर`
रूखसार थे उनके लाल लिख

16 टिप्पणियाँ:

डॉ .अनुराग said...

जावेद अख्तर से प्रभावित हो या पियूष मिश्रा से ..जो भी हो...ये निरंतरता बनी रहनी चाहिए ..

Satya Vyas said...

aarambbh hai prachand...

hatzz of.

ओम आर्य said...

खबरें न सुना दुनिया भर की
पात-पात, हाल-ए-डाल लिख

saagar ka rang aaj alag sa hai,
iske peechhe ki gulal likh.

अपूर्व said...

कमाल है..यह सीमाहीन, बेपरवाह, उच्छ्रंखल पहाड़ी दरिया आज छंदों के किनारे मे कैसे बँध गया भाई..
मगर मस्त है..दायरा बढ़ा दिया आपने कलम का इसी बहाने.
इब्तिदा-ए-इश्क से पहले की आपकी सलाह सही लगी..इंडिया के एक्स्टर्नल या कहें एक्स्ट्रा-मैरिटल अफ़ैयर्स पर एकदम खरी..
उम्मीद है ऐसे ही लाल-लाल नज़्मों मे ज़र्रा-ज़र्रा कमाल लिखते रहेंगे..एक्सरे रिपोर्ट्स के साथ साथ.

अपूर्व said...

और हाँ आत्मकथ्य बड़ा रोचक है आपका..वैसे आलसियों की अगर जुदा बस्ती होती तो शायद हम भी आपके ही पडोसी होते.. ;-)

केतन said...

badiya ji badiya.. :)

अनिल कान्त said...

छा गए साहब आप तो
वाह !!

गौतम राजऋषि said...

ये तो निराला ही अंदाज़ है सागर साब...

मक्ते पे मुस्कुरा रहा हूं।

...और हां अपूर्व की दूसरी टिप्पणी से अपनी भी सहमति है।

पारुल "पुखराज" said...

महज़ खोखले उड़ान न भर
ज़र्रा-जर्रा कमाल लिख

बहुत अच्छे…खूब

कुश said...

जिस तरह से लिखा है ये तुने
ऐसे ही फुल्टू धमाल लिख..


बहुत खूब लिखा है भाई.. एक्सरे वाली बात पर तो फ़िदा ही हुए हम..

हरकीरत ' हीर' said...

नज़्म-नज़्म लाल लिख
दिन,महीने, साल लिख

सागर जी कुछ अलग हट कर लगी ग़ज़ल ....

मज़ा आया पढ़ कर .....!!

अर्कजेश said...

ऐसी उम्दा गज़ल पढकर
फ़िर फ़िर से वाह वाह लिख

Dr. Shreesh K. Pathak said...

जैसा आपने कहा कि आप आलसी,...,,..,,..,, हैं, कविता तो खुद लिखवा ले जाती है ,सच है...बहुत ही शानदार और स्वाभाविक कविता....बधाई..

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

नज़्म-नज़्म लाल लिख
दिन,महीने, साल लिख


लहराते झंडों के साए में
जवां वीरों के भाल लिख

बहुत अच्छे…बहुत खूब

Vinashaay sharma said...

सुन्दर अभिव्यक्ति ।

दर्पण साह said...

Behterin Bus Behterin...
Khaskar...
"Bole so nihal"aur padosi" wala....

Aur saagar ji, Aproov ji, Gautam sir....
Kisi property delar se baat karoon...

kya pata 3 ke saath 1 free mil jaiye ghar, alsiyon ki basti main ;)