आज मुहब्बत बंद है.


अगर आज कोई पर्व है;
तो चलो पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो जाएँ,
तो तुम्हारे बारें में ना सोचें,
तो रिश्तों, जिम्मेदारियों और कर्तव्यों को प्राथमिकता दें

साल के कुछ खास दिन मुक़र्रर कर लें कि
इन दिनों में तुम्हारा तसव्वुर में दस्तक देना मना है

ना चाहते हुए भी
अपने बदन को उन रश्मों में शामिल कर लें,
चंद जोश भरे 'कोट्स' याद करें,
खुद को सांत्वना दें ,
कुछ महापुरुषों से खुद की तुलना करें ,
गैरों के दुःख से अपना दर्द मापें;
फिर इस निष्कर्ष पर निकलें कि-
ये तो कुछ भी नहीं!

साल-दर-साल गुज़ार दें ऐसे ही
फिर से जीने की तैयारी में
सिर्फ इस आस में कि कभी मिलो
तो दिखाऊँ तुम्हें,
कि किस तरह
एक अपाहिज से बैसाखी छीन लेने पर;
किस कदर
उसकी प्राथमिकता अचानक से बदल जाती है...

2 टिप्पणियाँ:

Amit K Sagar said...

Waaah! वधाई स्वीकारें.. शुक्रिया. जारी रहें.
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१५ अगस्त के महा पर्व पर लिखिए एक चिट्ठी देश के नाम [उल्टा तीर]
please visit: ultateer.blogspot.com

amar said...

एक अपाहिज से बैसाखी छीन लेने पर;
किस कदर
उसकी प्राथमिकता अचानक से बदल जाती है...

..... great..