अंतर्नाद


गर मुझसे होना है कुछ बेहतर
तो अब हो जाये
भरम में यूँ ही ना जिंदगी गुज़र जाये
अब आर या पार की लडाई खेलो

आदमीवश कुछ बुराइयाँ हैं मुझमें
चोरी की, फरेब किया, धोखा भी दिया

फिर ऐसा कौन सा अपराध था
जो था गैर-आदमियतन...

जिससे बदन में थरथराहट रहती है
जिगर सहमता रहता है
पांव कांपते रहते है
डर लगा रहता है
साँस चलती रहती है
और
दिल धड़कता रहता है

अगर यह हैं तुम्हारे
मुझमें होने के लक्षण
तो कहाँ तो तुम ?
बांकी बचे हुए !

उस कुफ्र को तोड़ो खुदा
बाहर निकलो-
बाहर निकलो...

1 टिप्पणियाँ:

डॉ .अनुराग said...

देखे शायद आपकी सुन ले खुदा .....इधर हमने तो बहुत आवाजे दी उन्हें......