पहचान खोता अस्तित्व


दिल में तुम्हारे भी
कहीं भीतर
बहोत दूर...
बैठा होगा 'अपराधबोध'
पांव मोड़े गर्भ में सिकुडे शिशु के जैसे
घड़ी-घड़ी पैर मारता होगा
उठती होगी टीस भी...

अभी मैं
तुम्हारे
मन के आकाश में
उस धुंधलके
तारे के तरह
हूँ जो खो जाएगा
थोड़ी ही देर में
सूर्य की चंद किरणों में...

1 टिप्पणियाँ:

swamiadbhutanand said...

bahoot khoob.aapke is gazal ne manovigyan ke gahan khoz ko satah par prastut kiya.kahin na kahin aap ne "aap beeti ko jag beeti bana dee".waah .chotee par kabile taareef.