आह! च.. चह...



हमेशा से नहीं बनना चाहता था मैं कवि.
ये तो बस मजबूरी में धरा हुआ रूप है
और...

इनमें शामिल है वो सभी चीज़ें
जो बनाती है निराशावादी
जैसे...

किसी का धोखा,
किसी की खूबसूरती,
तुम्हारे दिलफरेब अंदाज़,
मेरी गरीबी
तुम्हारा न मिलना...

मुझे नुकते, छंद, लय, अलंकारों
का ज्ञान नहीं
ना ही मेरे पास है व्याकरण का तमाम जानकारियां
शब्दकोष भी अधूरे है मेरे...
पूर्णविराम वाकया शुरू होने से पहले लगता हूँ मैं...
गोया
ना
''वो किस्सा सही गुज़रा,
ना ही वो कहने का ढब आया..."

कविताओं में देखो कितना उलझाव है...

मेरे कोमा, विसर्ग, अर्धविराम,
सभी कैसे बेतरतीब से है...

यह तुम्हें वैसे ही लगेंगे
जैसे...
बाढ़ के दिनों में गिरते है... 'राहत' दूर-दूर
वो भी 'पर्याप्त' नहीं मिलते...
या फिर
कि-
कोई स्कूली बच्चा चित्रकारी करते वक़्त
जब बिखेर देता है सारी पेंसिलें...

कवि होने से ज्यादा कवि जैसा दिखने
की चाह रही मुझे

मेरी कविताओं में नहीं मिलेगा
तुम्हें कल्पनाओं से परे-
विश्वकवि जैसा कुछ
जो हो
छितिज़ के उस पार,
संवेदनाओं के बेहद करीब
सोच से उल्टा...

जो देता हो जीवन को नया दृष्टिकोण...

मेरी पंग्क्तियों में मिलेंगे
तुम्हें अपने ही अनुभव
अपनी ही पीडा
अपना ही फरेब
बेबसी...
दुःख...
अवसाद
अतीत...
समयातीत
कलातीत...

मेरे कुर्ते, चश्मे और चमकदार लहज़े पर मत जाओ दोस्तों....
ना ही मेरे आखों में भविष्य तलाशो...


नहीं हूँ मैं कवि
मत दो मुझे यह चमकीले नाम
अमर होने की चाह नहीं है मुझको...

...तुमने व्यर्थ ही मुझे 'लेखक' या 'कवि' जैसा कुछ समझने की भूल कर दी...

3 टिप्पणियाँ:

linda said...

Very nice.

डॉ .अनुराग said...

किसी का धोखा,
किसी की खूबसूरती,
तुम्हारे दिलफरेब अंदाज़,
मेरी गरीबी
तुम्हारा न मिलना...
बड़े कोमन दुःख है न....किसी को भी एक अदद कवि बनाने के लिए ....

गोया
ना
''वो किस्सा सही गुज़रा,
ना ही वो कहने का ढब आया..."

यहाँ साला किसे आता है......??/



जबरा लिखते हो भाई...तुम्हे जरूर देव डी ओर गुलाल के गाने पसंद होगे .....मुझे भी है....

Reshu said...

apne ko bahut hi aacha samjha hai.