अजीब बात

अजीब बात

बंद कमरा,

घुप अँधेरा

बिखरे सामान

दर्दीले गीत...

सीधे उतरते

दिल के दिल में

दीवार पर पीठ टिका कर

कुछ पन्नो को पलटना

जब कुछ ना हो करने को

तो यह करना भी

कहीं से अच्छा लगता है


रात अपने अंधेरों और कुहासों की

बाहों में जा रही है

इधर मैं तुम्हारी गुदाज़ बाहें

तलाश रहा हूँ

गिरते-पड़ते...

किनारों के नमकीन बूँदें

कब गिर पड़ी

आहट नही मिली....

ठन्डे बदन से गर्म आंसू...

अब तलक जिंदा सा कुछ॥

...... अजीब बात है !

---सागर

आओ चलो...

आओ चलो

आओ चलो...
आसमां की ताक पर
जो चाँद बादल की झाडियों में उलझा है,
उसे एक स्टूल पर पैर रखकर
अपने तलवे उचका कर
दोनों हाथों से बड़े जतन से उतार लायें

आओ चलो...
फिर उसमें अपना चेहरा देखकर मुस्कुराएँ
और फिर उसको थाली में सजाएं
कभी बच्चे को दे दें
की लो खेलो
कभी किसी के प्रेम कहानी के गवाही दिलवा दे
किसी को निहार ले इसमें
जो भुला-बिछडा हो
कोई दुल्हन अपना श्रृंगार करे

आओ चलो...
यह चांदी का सिक्का सबके गले में बाँध दें
किसी प्रियतम के दामन में टांक दें
किसी खास को तोहफे में दे दें
चलो, चाँद को धरती पर ले आयें
इससे पहले की विज्ञान
चाँद को एक और धरती में तब्दील कर दे
आओ चलो...
... सागर

पनाह

पनाह

(१)

मैंने उनकी बड़ी प्रसंशा की,

सामने की, पीठ पीछे भी की

इतनी की के वो

जब अपनी लय में आती तो आत्ममुग्ध हो कहती---

'सर पर बिठाना तो कोई आपसे सीखे'

(२)

मैंने उनसे प्रेम किया, बहुत किया---

फिर ऐसा किया की

अपना अस्तित्व खो बैठा
अब मैं शून्य था, वो ब्रह्माण्ड

मैं विलुप्त था, वो गतिमान

(३)

अब सचमुच मैं गायब था

ह्रदय से, विचार से, दुनिया से

और सोच से भी
मैंने उन्हें सौंपा था ब्रह्माण्ड और

उन्होंने मुझे स्वयं में शामिल ना किया
अब मैं अपना ठिकाना किसी और ग्रह में खोज रहा हूँ

इस ब्रह्माण्ड से बाहर हो
... फिलहाल मैं एक मुहाजिर हूँ, शरणार्थी भी कह सकते है आप मुझे।

---सागर

छूटा हुआ किस्सा

छूटा हुआ किस्सा

मेरे दराजों में बंद है
वो ख़त---
जिसके हरेक हर्फ़ में तुम्हारा चेहरा नुमाया होता था
मैंने सहेज रखा है दोपहर
जिसमे वस्ल की उमस है
मैंने समेत रखा है वो लम्स
जैसे फिर किसी ने छुआ ही ना हो

मैंने वैसे ही संजो रखा है
वो कांच
वो गिरा-गिरा सा दुप्पट्टा
वो बिखरी-बिखरी हँसी
वो छुटी-छुटी सी बात
वो छुई हुई सी नज़र
वो अल्फाज़
वो...

बस खो गई तुम ऐसे ही...
पता नही कैसे.....
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मेरा जिस्म

मेरा जिस्म
----- सागर

जिस्म एक भट्टी है
सुलगता हुआ सा
कच्चा माल डाला जाता है
इस भट्टी के दिमाग में
और निकल आता है नयी चमकदार प्रोडक्ट
बरसों से यह वो सब उत्पादन करती रही
जो एक तहजीबी और सलीकेदार इंसानी जिस्म करता है
और करते-करते बेरंग हो गया यह भट्टी
फिर इसे शहर से दूर करने की कवायद की जाने लगी
ऊहापोह में भट्टी
मुंह बाए खरा है
आकाश की ओर
की या खुदा ---
मुक्ति दे!

आईने-अक्स

ऐ- आईना

वो आईना दिखा गया मुझे,

मेरी कई सूरतें बता गया मुझे

ज़ज्बात में तोह पाकीज़गी ही थी

फिर कौन बददुआ दे गया मुझे

वो आए तोह रेशम के मौसम आए

अलविदा कहा, तो मौत से मिला गया मुझे

जिंदगी कभी इतनी पुरसुकून न थी

फूल की मानिंद जुल्फों में लगा लिया मुझे

होठ खुलते थे तोह फूल गिरते थे

सज़ा दे गई तेरी हर अदा मुझे

वो लड़की, वो लड़की सिर्फ़ वही लड़की

गई मेरी रूह से मिला मुझे
------- सागर

क्षमा याचना

११ सितंबर 2008

तुम्हारे लिए हम सिर्फ़ संसाधन है,

तुम वोह टाई वाली हो

जो करते तोह टीम वर्क है

पर प्रोजेक्ट ख़तम होने पर बॉस के सामने

तन कर खरे हो जाते है और

क्रेडिट ले जाते है सब

बहुत कुछ कमाया है तुमने

रात को नींद भी आ जाती है तुम्हें '

इतना कुछ जो सहेजा है तुमने

आत्मा को मारकर, ज़मीर को बेचकर, गैरत को ताख पर रख कर

काबिल-ऐ- तारीफ है यह

सच तुम्हें इसका इनाम मिलना ही चाहिए

मैं बहुत शर्मिदा हूँ जो ऐसा ना कर सका

शायद गुनहगार भी हूँ जो यह खेल ना खेल सका

हमें नींद भी नही आती

बेचैन सा रहता हूँ हर वक्त

माफ़ करना जो आत्मसम्मान बेचना ना आ सका

सबको बेवकूफ बनाना ना आ सका

----- सागर